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चिन्तन करते हुए परम वैराग्य को प्राप्त हो दीक्षा धारण में तत्पर हुए। उसी समय लोकान्तिक देवों ने उनके वैराग्य की पुष्टि करते हुए स्तुति की। देवों ने आकर दीक्षा कल्याणक महाभिषेक किया । निवृत्ति' नामक पालकी तैयार की। उसी समय पद्मप्रभु ने अपने पुत्र को राज्यभार समर्पित किया । स्वयं ने कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन शाम को चित्रा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ मनोहर वन में परम प्रादर से जनेश्वरी दीक्षा धारण की। उसी दिन उन्हें मनः पर्यय ज्ञान प्रकट हो गया । सिद्ध साक्षी में दीक्षा धारण कर बेला का उपवास किया। अर्थात् दो दिन का उपवास कर पञ्चमुष्टी लौंच कर निर्ग्रन्थ अवस्था-जातरूप धारण किया ।
प्रथम पारणा
निर्जन किन्तु सुरम्य वनस्थली । एकाग्रचित्त योगिराज ध्यान में लीन विराजे हैं । जाति विरोधी प्राणी भी आस-पास सानन्द प्रीति से विचरण कर रहे हैं । बन के चारों ओर तपःलीन मुनीराज की सर्वभूतहित भावना की रोशनी फैल रही है। परम दया और अहिंसा का प्रकाश व्याप्त हो गया है । पलक मारते दो दिन पूर्ण हो गये। तीसरा सूर्योदय हुआ । अन्धकार मिटा दिन चढ़ने लगा । आहार की बेला ग्रा गई। श्री प्रभु ने श्रागमानुसार उचित समय पर चर्या को प्रयास किया । " जैसे को तैसा मिले" कहावत है। पुण्यकाली को पुण्यरूप पात्र का समागम प्राप्त होता है । अस्तु, श्रेष्ठतम बुद्धिशाली मुनि कुञ्जर पारणा के लिए वर्द्धमान नगर में प्रविष्ट हुए। चांदी सदृश शुभ्रकान्ति के सदृश रूपशाली महाराज सोमदत्त ने अपनी सती साध्वी भार्या सहित विधिवत् पडमान कर नवधा भक्ति से प्रासुक क्षीराम यादि का प्रहार दिया । दानातिशय से उसके यहां पञ्चाश्चर्य हुए । अर्थात् रत्न-वृष्टि, पुष्प वृष्टि, गंधोदक-वृष्टि, दुदुभीनाद और जय-जयध्वनि हुई । शुभभावों से सातिशय पुण्यार्जन किया ।
आहार ग्रहण कर श्री गुरु वन में जा विराजमान हुए । नाना प्रकार घोर तपश्चरण करने लगे । ६ महीने पर्यन्त प्रखण्ड मौनव्रत धारण कर उग्रोन कठिन साधना के बल से कर्म समूह को भस्म करने लगे । जैसे-जैसे कर्म पटल हट रहे थे वैसे हो वैसे ग्रात्म तेज प्रकाशित हो रहा था ।
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