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६-१००८ श्री पद्मप्रभु भगवान
पूर्वमन---
संसार चक्र की प्रक्रिया कर्मचक्र की गति से चलती है । शुभाशुभ कर्मों के अनुसार जोत्र महान या लष होता है, धनाढ्य, दरिद्री, सुन्दर, प्रसुन्दर, मान्य, अमान्य, पूज्य, प्रपूज्य, कुरूप, सुरूप होता है । इनके प्रदर्शन का नाम ही संसार है । कर्मों की प्रक्रिया में वाह्य द्रव्य, क्षेत्र काल एवं भाव भी सहायक होते हैं।
धातकी खण्ड पुण्य क्षेत्र है क्योंकि वहाँ पुण्य पुरुषों का सतत् निवास पाया जाता है। पूर्व विदेह में सीता नदी के दाहिने तट पर वस्स देश है, उसमें है एक सूसीमा नामक अनुपम नगर है। यहाँ का राजा था अपराजित । विशिष्ट पुरुषों के क्रिया-कलाप भी अपने ढंग के निराले होते हैं । यह वाह्याभ्यन्तर शत्रुओं को जीतने में समर्थ था किन्तु स्वयं अजेय था । अपने पराक्रम से कुटिल राजानों को वश कर लिया था । महान भुजबल के साथ सात प्रकार की सेना बल से युक्त था ।