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________________ ४२ मिट्टमान शिलोपरि भवेद् भिङ्ग-मेकहस्ते युगाङ्गुलम् | अर्धाङ्गुला भवेद् वृद्धि-र्यावद्धस्तशताद्ध कम् ||२|| खरशिला के ऊपर मिट्ट नाम का थर बनावें । एक हाथ के विस्तार वाले प्रासाद को चार अंगुल के उदय का बनायें। पीछे दोसे पचास हाथ तक के प्रासाद के लिये प्रत्येक हाथ भाषा २ अंगुल बहा करके बनायें || २ || प्रकारन्तर से भिट्टमान -- मशीन मान क्रमात् । पञ्चदिग्विंशतिर्यावळताच विवद्धयेत् ॥ ३ ॥ एक हाथ के विस्तार वाले प्रासाद को चार अंगुल का भिट्ट बनायें। पीछे दो से पांच हाथ तक के प्रासाद को प्रत्येक हाथ एक २ अंगुल छह से दस हाथ तक के प्रासाद को प्रत्येक हाथ पौन २ अंगुल, ग्यारह से बीस हाथ तक के प्रासाद को प्रत्येक हाथ श्राधा २ अंगुल और इक्कीस से पचास हाथ तक के प्रासाद को प्रत्येक हाथ पाव २ अंगुल बढ़ा करके भिट्ट का उदय रक्खें ॥३॥ यही मत क्षीराव, अपराजित पृच्छा वास्तुविद्या और वास्तुराज आदि शिल्पग्रन्थों में दिया गया है। fager fire एक द्वित्रीणि विट्टानि हीनहीनानि Frater प्रमाणस्य चतुर्थ शेन प्रासादमण्डने कारयेत् । निर्गमः || ४ || atrian कहा है कि इति भट्टमानम् । उपरोक्त कथन के अनुसार भिट्टका जो उदयमान धाया हो, उसमें एक, दो अथवा तीन भिट्ट बना सकते हैं । परन्तु ये एक दूसरे से होनमान का बनाना चाहिये । राजसिंहकृत वास्तुराज में कहा है कि "युगांशहलं द्वितोयं तदर्वोच्चं तृतीयकम् ।" अर्थात् प्रथम भिट्ट से दूसरा भिट्ट पौन भाग का, और तीसरा भिट्ट भाषा उदय में रक्खें तथा अपने २ उदय का चौथा भाग बराबर निर्गम रक्खें ॥४॥ "प्रथमं निर्गमं कार्यं चतुर्थांश महामुने ! | द्वितीयं तृतीयांशेन तृतीयं च तदर्धतः ॥" थम भोट का निर्गम *पने चौथे भाग, दूसरे भिट्टका निगम अपने तीसरे भाग पौर तीसरे भिट्टका निर्गम अपने उदय से प्राधा रक्खें ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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