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________________ प्रासादमरखने अंक और ती पाह त्ये क हाथ एक अंगुल बढ़ा करके बनाये । उसकी मोटाई बारह अंगुल की रक्खें। इस प्रकार समचोरस शिला का कुल माम ४७ अंगुल का होता है। अपराजित मत से धारणी शिला का मान "नबत्यङ्गुल दैर्थे च पृथुत्वे चतुर्विंशतिः । द्वादशाङ्गुलपिण्डं च शिलामानप्रमागतः ।।" सूत्र ४७ श्लो० १६ नचे अंगुल लंबी, चौवीस अंगुल चौड़ी और बारह अंगुल मोटी, यह धरणी शिला का मान जाने। mmmm....... ...................mmmmmm दूसरा मत "एकहस्ते च प्रासादे शिला वेदाङ्गुला भवेत् । षडंगुला विहस्ते च त्रिहस्ते व महाउगुला ॥ चतुर्हस्ते च प्रासादे मिला स्याद् द्वादशाङ्गुला। तृतीयांशोदयः कार्यों हस्तादौ च युगान्ततः ॥ ततोऽपरेऽस्तान्तं वृद्धिस्थ्यङ्गगुलतो भवेत् । पुन अनुलतो वृद्धिः पश्चाद्धस्तकावधि ॥ पादेन चोच्छिता शस्ता तां कुर्यात् पङ्कजान्विताम !!" सुत्र १५३ एक हाथ के प्रासाद में चार अंगुल को, दो हाप के प्रासाद में छह अंगुल को, तीन हाय के प्रासाद में नव अंगुल को और चार हाथ के प्रासाद में बारह अंगुल को समचौरस धरणो शिला स्यापन करना चाहिए। चार हाथ तक के प्रासाद के लिये धरणी शिला का ओ मान माया हो, उसके तीसरे भाग शिला को मोटाई रखना चाहिये। पांच से पाठ हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाथ तीन तीन अंगुल और नव से पचास हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाय दो दो अंगुल बढ़ा करके बनाये । इस प्रकार पचास हाथ तक के विस्तार वाले प्रासाद के लिये १०८ अंगुल के मान की धरणी शिला होती हैं। वह चौथे भाग मोटो रक्खें और कमल की प्राकृतियों से शोभायमान बनायें। धरणी शिला अपर के रूप----- "लहरं मत्स्यं मबहूकं मकरी मासमेव । जलं सर्प शंखयुक्तं शिलामध्ये ह्यलकृतम् । भोरा०प० १०१ ......... .. ................
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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