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________________ 3 reasure शिला का जो समचोरस मान धावे, उसके तीसरे भाग का पिंड (मोटाई) रक्खें। पिंड के माघे भाग में जिला के ऊपर रूपों बनावें । तथा पुष्पकी प्राकृति बनायें । ज्ञान प्रकाश दोषार्थय के मत से धरणी शिला का मान "एकहस्ते तु प्रासादे शिला वेदाङ्गुला भवेत् । पतंगुला द्विहस्ते तु विहस्ते ग्रहसंख्यया ॥ arentsगुलं शिलामानं प्रासादे चतुर्हस्तके | तृतीयः कार्यो हस्ताद्याद् वेदहस्तकम् || चतुर्हस्तादितः कृत्वा यावद् द्वादशहस्तकम् । पाला व वृद्धिर्हस्ते हस्ते च दापयेत् ॥ सूर्यादितः कृत्वा यावच जिनहस्तकम् । लाभवेद् वृद्धिरुच्छ्रये तु नवाङ्गुला ॥ afe कृत्वा यावत् बटुवा हस्तकम् । पादमाला च वृद्धिः पिण्डं च द्वादशाङ्गुलम् 11 पादित कृत्वा यावत् पचाशद्धस्तकम् । एकला भवेद दृद्धिः पिण्डं च द्वादशाङ्गुलम् ||" प्र० ११ एक हाथ के प्रसाद में शिला का मान चार अंगुल दो हाथ में छः मंगुल, तीन हाथ में नव अंगुल और बार हाथ के प्रासाद में बारह अंगुल जिला का मान है। एक से चार हाथ तक केस में शिला का जो मान आये, उनके तीसरे भाग शिला की मोटाई रखे पांच से बारह हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाथ पौत्र अंगुल बढ़ाकर के तेरह से चोबीस हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाब प्राधा २ अंगुल बढ़ा करके बनायें पांच से चौबीस हाथ तक के प्रासाद में शिला का ओ मान प्रावे उसकी मोटाई नव अंकुल की रक्खें । पचीस से इसोस हाम तक पोन २ ן १६ चं
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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