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________________ weat after के अनुसार लकड़ी, मिट्टी, ईंट, पाषाण, धातु प्रचचा रत्न, इन पदार्थों में से किसी भी एक पदार्थ का देवालय बनायें तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है । देवालय erect बनायें तो करोड़ गुना नाटीका बनायें तो दस करोड़ गुना, इंट का बनायें तो सौ करोड़ सुना और पावाखका बनायें तो अनंत गुना फल मिलता है। परमा • केमात्र मीक्षा पास्तुविर के बाद बज लंब refer के इमारती काम करने के लिये शिल्पीयों के पास मुख्य पाठ सूत्र पाये जाते हैं। उनमें प्रथम दृष्टि पूरा हस्त ( गण ) सूत्र, तीसरा सुज की रस्सी चौधा सूख का डोरा, पांच घड़ा का होना, सानो साथी ( रेल ) और आठ प्रकार है । इसका परिचय के लिये देखीये नीचे का रेलर भित्र । Prequentis इनमें जो मूर्ति मावि वस्तुओं का नाप करने के लिये दूसरा हस्तसूत्र है, यह तीन प्रकार के माप का है । उसको जानने के लिये माप की तालीका इस प्रकार है---- ४ ५ २ तुल ३ ७ ५ * १० बोवर " 17 ग 1 27 ** " " कोटिल दराने पुष्यं मृणमये दशसङ्ग णम् | ऐore restfeel से स्वतः " : 生 म - १ - १ बोर १ मीक्षा ( सील ) 我 मंगा १ कला, गोल, १ पर्व, १, मूठ, सल, - १ wwe, १ पिष्टी, - १ तुखी, - १ प्रदेश १ जयताल ११ मंयुल १२ १४ २१ २४ ४२ मंगुल ५४ १०६ ३० " १००० " 12 17 " धनुष १ गोकर्ण - १ बिलाद, साल, बिस्ता, S ० १ श्लो० ३५ १ उद्दिष्ट, पाद, १ रत्नि, १ मलि, हाथ, दो फुट का गज TRY W add * १ नम १ कोस " Mo २ कोस १ सब्बूत ४ गत - १ योजन, १ कु १ काम, पुरुष, १ धनुष, नाडीयुग, १ arte ठयवोदरका एक अंगुल माप लीखा है, यह तीन प्रकार का माना जाता है। जैसे आठ यवोदर का एक मंल यह ज्येष्ठ माप का सात यवोदर का एक प्रंशुल यह मध्यम भाप का मोर छह सोदर का एक मंल यह कनिष्ठ मानका मेगुल माना जाता है। इन तीन प्रकार के भलों में से जिस २४ अंगुल के नाप का हाथ बनाया जाय तो यह हाथ भी ज्येष्ठ, मध्यम मोर कनिष्ठ भागका होता है । जैसे मनोदर का एक अंगुल ऐसे २४ अंगुल का एक ज्येष्ठ हाम, सात यबोदर का एक अंशुल, ऐसे
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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