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________________ नधार स्थपति देवालय गृह मादि वास्तुशिल्प के काम करने वाले को सूत्रधार अबका कति कहा जाता है। पौवह राबलोक के देवोंने इकट्ठहोकर शिवलिंग के भाकारवाली महादेवजी की अनेक प्रकार से पूजा की, जिससे प्रासाद को वौवह जाति उत्पन्न हुई इन प्रत्येक में चोरस, लंबवोरस, गोल, खगोल और मष्टान्न (भा कोना पाली ) ये पांच प्राकृतियाले प्रासाद शिवजी के कश्नानुसार ब्रह्माजी ने बनायें । व प्रत्येक में भोरस माहिवाले प्रासाद को ५८८, संरचोरम प्रासाद की ३००, गोल प्रासाद की ५०, बमोल धासाय को १५० पोर मष्टास्त्र प्रसाद की ३५० जाति भेद हैं। इसमें मिश्र जाति के प्रासाद के ११२और मिलाने से दो हमार जाति के प्रासाद होते हैं। इन प्रत्येक के एचौस पचीस व होने पास हमार भेद होते हैं। इस प्रत्येक की प्राउ मा विमस्ति होने से कुल चार लाख भेद प्रासाद के होते हैं। कहा सपिरत परम्न जानने वाले को शास्त्रकारने स्पति ( सूत्रधार ) कहा है। प्रासाद की श्रेष्ठता भारतीय संस्कृति में प्रासाव का प्रत्यधिक मादर किया जाता है, जसमा ही नहीं परन्तु पूजनीय भी माना जाता है । इसका एक कारण यह हो सकता है कि प्रासाद को शिक्षिय का स्वरूप माना गया है . असे शिवलिंग को पीठिका है, जैसे भासाद को भी जगतीरूप पीलिका है. RATE का जो चोरस भाग है, वह ब्रह्म भाग है, उसके ऊपर का जो मष्टान भाग है, वह विषाणुमाग है और उसके ऊपर का यो पोल शिखर का भाग है, वह साक्षार शिवलिंग स्वरूप है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि---प्रासाद के प्रत्येक अंग और उपांगों में देव और नीयों का विन्यास करके देव प्रलिष्ठा के समय उसका. अभिषेक किया जाता है। इसलिये प्रासाद सर्व देवमम बन जाता है। सोसरा कारण यह भी हो सकता है कि प्रासाद के मध्य भूतस से भारिणी शिला के ऊपर से एक नाली ( जिसको शास्त्रकार योगनाल अथवा ब्रह्मानाल कहते हैं और आधुनिक शिल्पी एप्रनाल कहते हैं) देब के सिंहासन तक रखने का विधान है। इसका कारण यह मामा जाता है कि प्रासाद के गर्भगृह के मध्य भाग से जलपर जीवों की पाकृतिवाली धारणी नाम की शिला भीक में स्थापित की मासी, उसके ऊपर सूवर्ण प्रथमा मांधी का धर्म (नया) रख कर योगनाल रखी जाती है। इसका कारण यह हो सकता है कि...यह धारणी शिक्षा के पर अलबर जीवों की भातियों होने से यह शिक्षा क्षीर समुद्र में शेषशायी भगवान स्वरूप माना गया, इसके नाभिकमल से उत्पन्न हुमा कमलरंड मल्प योगनास है, इसके ऊपर ब्रह्मा की उत्पति स्वरूप प्रतिष्ठित देव है। इत्यादि कारणों सा का अधिक प्रादर किय जाता है। hristmAN:-:008-ka-............. प्रासाद के निर्माण का फल "खशक्त्या काष्टमृदिष्टकाशैलधातुरलजम् । देवतायसनं कुर्याद् धर्मार्थकाममोक्षदम् ॥" ०१. श्लो० ३३
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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