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________________ ....ustannumAniamsACE २०० प्रासादमारने ......... . धर्मनाथ प्रासाद के प्ररथ के ऊपर तिलक के बदले में एक एक शृंग चढाने से धर्मवृक्ष नाम का प्रासाद होता है ।।६।। श्रृंग संख्या-कोणे ५६:प्ररथे १२०, कोणी पर १६. नंदी पर १६ भद्र १६, प्रत्यंग ८० एक शिखर, कुल २३३ और तिलक ४ कोहो । विभक्ति सोलहवीं । ३१-शान्तिजिन अथवा श्रीलिंग प्रासाद---- चतुरस्त्रीकृते क्षेत्र द्वादशांशबिभाजिते । कणों भागद्वयं कार्यः प्रतिकर्णस्तथैव च ॥७॥ भद्रार्ध सार्धभागेन नन्दिका चार्धभागिका । कर्णे क्रमवयं कार्य प्रतिकणे सथैव च ॥५०॥ नन्दिकायां शृङ्गकूट-मुरुशृङ्गाणि द्वादश । शान्तिनामश्च विज्ञयः सर्वदेवेभ्यः कारयेत् ॥१॥ श्रीलिङ्ग च तदा नाम श्रीपतिषु सुखावहः । इति शान्तिवल्लभः श्रीलिङ्गप्रासादः ॥३१॥ प्रासाद को समचोरस भूमिका बारह भाग करें। उनमें दो भाग का कोण, दो भाग का प्रतिकणं, डेढ भाग का भद्राध और प्राधे भाग की भद्रनंदी करें। कोण और प्रतिकर्ण के कार दो दो क्रम, भद्रनंदो के ऊपर एक शृंग और एक कूट, चारों भद्रों के ऊपर बारह उरुशृंग वढावें । ऐसा शांति नामका प्रासाद जानें, यह सब देवों के लिये बनावें । इसका दूसरा माम श्रोलिङ्ग प्रासाद है, वह विष्णु के लिये सुखशयक है ।।७६ से ६॥ . शृंगसंख्या-कोणे ५६, प्ररथे ११२ भद्रनंदी पर ८, भद्रं १२, एक शिखर, कुल १८६ भृग और कूद नंदो पर। ३२-कामवायक प्रासादउरुशृङ्ग पुनदद्यात् प्रासादः कामदायकः ||२|| इति कामदामकः ।।३२॥ शांतिनाथ प्रासाद के भद्र के ऊपर एक उमभंग अधिक चढ़ाने से कामक्षायक प्रासाद होता है ।।८।। श्रृंग संख्या-भद्र १६ बाको पूर्ववत् कुल-१६३ शृंग।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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