SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ जिनेन्द्रप्रसादाध्यायः मनन्तजिन प्रासाद के प्ररथ के ऊपर एक २ तिलक चढ़ाने से सुरेन्द्र नाम का प्रासाद होता है, यह सर्व देवों के लिए प्रिय है ।१७३!! श्रृंग संख्या-पूर्ववत् ४५३ और तिलक ८ प्ररथे। विभक्ति पन्द्रहवीं । २६-धर्मनायजिनप्रासाद--- चतुरस्रीकते क्षेत्रे चाटाविंशतिभाजिते । कई स्थं च भद्रा युगमार्ग विधीयते !!१!! निर्गमं तरप्रमाणेन द्विभागा नन्दीकोणिका । केसरी सर्वतोभद्रं रथे कर्णे च दापयेत् ॥७॥ तदूर्वे तिलक देयं सर्वशोभान्वितं कृतम् । नन्दिका कर्णिकायां च शृङ्गो शृङ्गमुत्तमम् ||७६॥ भद्रे चैवोरुचत्वारि चाष्टौ प्रत्यङ्गानि च । धर्मदो नाम विख्यातः पूरे धर्मविवर्धनः ||७७॥ इति धर्मनाथजिनप्रासादः ॥२९॥ प्रासाद को समचोरस भूमि का अट्ठावीस भाग करें। उनमें चार भाग का कोण, चार भाग का प्ररथ, 'जार भाग का भद्रार्ध, एक भाग की कोणी, और एक भाग को भद्रनंदी बनावें । ये सब अंग समदल रक्खें। कोण और प्ररथ के ऊपर केसरी और सर्वतोभद्र ये दो क्रम बहावें और उसके कार शोभायमान एक एक तिलक चढ़ायें । कोणी और नन्दी के ऊपर दो दो श्रृंग चढ़ावें । भद्र के ऊपर चार उरुग और आठ प्रत्यंग चढावें । ऐसा धर्म को देने वाला धर्मद नाम का प्रासाद नगर में धर्म को बढाने वाला है ।।७४ से ७७॥ मग संख्या-कोरणे ५६, प्ररथे ११२, कोणी पर १६, नंदी पर १६, भद्रे १६, प्रत्यंग, ८ एक शिखर, कुल २२५ शृंग और तिलक ४ कोणे और ८ प्ररपे कुल १२ । ३०-धर्मवृक्षणासाब--- तद्र पे तत्त्रमाणे च कर्तव्यः सर्वकामदः । स्थोषे च कृते शृङ्ग धर्मवृक्षोऽयं नामतः ||७|| इति धर्मवृक्षप्रासादः ॥३०॥
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy