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________________ Thisilliamerifierivativitimammy- i mrtir हमा है। यदि विशेष रूप से जगमी का निर्माण संभव न हो तो भी पत्थर की शिलामों के तीन थर एक में कार एकरने चाहिए । इन घरों को भिद्र क. जाला है। नीचे का भिट्ट दूसरे की अपेक्षा कुछ मोटा पौर दूसरा सीमा में कुल माया रम्ला जाना है । भिट्ट जितना हो उसका यौवाई निर्मम या निकास किया जाना है। " m भिट्ट या जगनी के ऊपर प्रासाद पीठ का निर्माण होता है। प्रासाद-पीठ और जगती का भेद मट गमझ लेना चाहिए। जगती के अपर मयन अनार जाने वाले समगृह या मंडोवर की कुर्सी की संज्ञा प्रासार पोट। इस पीठ की जिननी ऊंचाई होती है उसी के बराबर गर्भगृह का फर्श रक्खा जाता है। आमाः निर्माण के लिए भी गोले गरनों का रा विभिन्न थरों का विधान है । जैने नौ अंश का जायाभ, मात भाग की कगणी, कपोनिया के वान के साथ भात भाग की प्रायपदी (जिम में मिह मुख की यानि धनी रहती है । और फिर उसके ऊपर बारह भाग का गज पर, मग भाग का अश्व थर और पाठ भाग का नर यर बनाया जाता है। प्रत्येक दो घरों के बीच में थोड़ा-अंतराल देना उमित है और ऊपर नीचे दोनों और पाली करिशका भी रवाही जा सकती है। मारपीट के कर गर्भ गृह या मंडोबर बनाया जाता है जिसे बास्तबिक अप में प्रासाद का उप भाग करना नाहिर माह का अर्थ है पीठ या पासन और जो भाग उसके ऊपर बनाया जाता था उसके निए महायर यह संज्ञा प्रचलिन हुई। मंडोवर के उत्मेष वा उदय को १४४ भागों में बांटा जाता है। यह अंबा आमारपीट के मस्तक में दम त ली जाती है । इसके भाग ये है ...-चुरत ५ भाग, कुम्भक २० भाग, कलश भाग, जराला भाग, पोतिका या पोतालि भाग, मंसी । भाग, असा ३५ भाम, उसनपा (म) १२ भाग है (जिने गुजराती में डोनिया' भी कहा जाता है), भरणी भाग, शिरावटी या शिरापः १० भाग, ऊपर की कपोलानि भाग, अंतरात हाई भाग और छज्जा १३ भाग । इस प्रकार १४४ भाग मंडोवर के उपयं में जाते है । छाने का बाहर की ओर निकलता खाता दश भाग होता है। एक विर प्रकार का मोवर मेग मंडोवर कहलाता है, इसमें भरणी के ऊपर से ही - भाग की मञ्ची देकर ५ भाग की अंधा बनाई जाती है और फिर दुज्ने के ऊपर ७ भाग की एक मची देकर १६ भाग की अंधा बनाते हैं। उसके ऊपर भाग की भरगी,भाग की शिरावटी, ५ भाग का भारपट्र और फिर १२ भाग का कूट शव या छजा। इस प्रकार मंडोबर की रचना में तीन जंधा और दो उज्जे बनाये जाते थे। प्रत्येक ज में भि. भित्र प्रकार की मूर्तियां उत्कीर्ग की जाती है । आमेर के जगत शरणजी के मंदिर में मेक मंडोवर को रचना की गई है । एक दूसरे के कार ओ परी का विन्यास है उनमें निर्गम और प्रवेश का प्रयान बाहर की पौर निकलना खाता और भीतर की पोर दयाव रखने के भी नियम दिए गए हैं, मंडन का कबम है कि मदि प्रासाद निर्माण में अल्प द्रव्य व्यय करना हो तो तीन सालों में से स्वानुसार संधा, रूप या मूर्तियों का निर्माण छोड़ा भी जा सकता है (२८)1 इटों से बने मंदिर में भींत की कौडाई गर्भ गृह की चौड़ाई का चौथा भाग और पत्थर के मंदिर में पांचवा भाग रखनी चाहिए। गभारा बीच में चौरस (युगात्र) रखकर उसके दोनों प्रोर फालनाएं देनी चाहिए, जिनको उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। मंडन ने सालनालों के लिए भइ सुभद और प्रतिभा शब्दों का प्रयोग किया है। उन्ही के लिए उकाल शब्दावली में रथ, अनुस्थ, प्रतिरम, कोपरय शब्द पाते हैं। मंडोवर मोर उसके सामने मनाये जाने वाले मंपों के सम्मो की ऊँचाई एक दूसरे के साथ मेख में श्वनी पावश्यक है। मंडप के ऊपर की धनमा गुमट को करोट कहा गया है। इस करोट की ऊँचाई मंडप की
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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