SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रासादमडने .. . ... ... प्रासादो वीतरागस्य पुरमध्ये सुखावहः । नृणां कल्याणकारी स्याचतुर्दिा प्रकल्पयेत् ।।१२।। इति जिनप्रतिष्ठा वीतरागदेव का प्रासाद नगर में हो तो सुखकारक है, तथा मनुष्यों का कल्याण करने वाला है। इसलिये चारों दिशा में ये बनाने चाहिये ॥२॥ जलाश्रय प्रतिष्ठा माधादिपञ्चमासेषु वापीकूपादिसंस्कृतम् । तडागस्य चतुर्मास्यां कुर्यादापाढमार्गयोः ॥१३॥ असंस्कृतं जलं देवाः पितरो न पिबन्ति तत् । संस्कृते तृप्तिमायाति तस्मात् संस्कारमाचरेत् ||६|| याबड़ी और को प्रादिको प्रतिष्ठा मोल संक्राति का मास छोड़कर भाष प्रादि पांच मास में करें। तालाव की प्रतिष्ठा चौमासे के चार मास प्राषाढ़ और मार्गशीर्ष, ये वह मास में करें । जलाश्रयों के जन्म का संस्कार न किया जाय तो उसका जल पितृदेव पीते नहीं हैं। संस्कार किये जल से ही पितृदेव तृप्त होते हैं । इसलिये जल का संस्कार अवश्य करना चाहिये ।।६३-६४ जलाश्रय बनवाने का पुण्य ---- जीवन वृक्षजन्तूनां करोति यो जलाश्रयम् । दत्ते या स लभेत्सोख्य-मुच्या स्वर्गे च मानवः ||५|| अल, वृक्ष और सब जीवों का जीवन है । इसलिये जो मनुष्य जलाश्रय बनवाता है, वह मनुष्य जगल में धनधान्य से पूर्ण ऐहिक सुखों को, तथा स्वर्ग के सुखों को प्राप्त करता है और मोक्ष पाता है |शा वास्तुपुरुषोत्पत्ति पुरान्धकाधे रुद्र-ललाटात् पतितः चितौ । स्वेदस्तस्मात् समुद्भूतं भूतमत्यन्तं दुस्सहम् ॥१६॥ गृहीत्वा सहसा देवै-यस्तं भूमावतोमुखम् । जानुनी कोणयोः पादौ रक्षोदिशि शिवे शिरः ॥१७॥
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy