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________________ इष्टमोऽध्यायः १५५ सब मंडलों में सर्वतोभद्र नामका मंडल प्रसिद्ध है, उसका तथा अन्य मंडलों का स्वरूप प्रत्यशास्त्र (अपराजित पृच्छा सूत्र - १४८ ) से जानें। यज्ञमंडप में पूर्वादि दिशाओं में अनुकम से पीपला, गुलर, बरगद और पीपल के पत्तों का तोरण बांधे ५३॥ ऋत्विजसंख्या द्वात्रिंशत् षोडशाष्टौ च ऋत्विजो वेदपारगः । कुलीनानङ्गसम्पूर्णान् यज्ञार्थमभिमन्त्रयेत् ॥ ५४ ॥ करने वाले बसीस, सोलह श्रथवा माठ ऋत्विज आमंत्रित होना चाहिये। ये सब वेदों के ज्ञाता हों, कुलवान हों और अंगहीन न हों ||१४|| देवtara fafe जलेन च ॥ ५६ ॥ auster त्रिभागेन चोचरे स्नानमण्डपम् | स्थण्डिलं वालुकं कृत्वा शय्यायां स्वापयेत् सुरम् ॥५५॥ पञ्चगव्यैः कषायैश्च वल्कलैः क्षीरवृक्षजैः । स्नापयेत् पञ्चकलशैः शतवारं मंडप की चारों दिशा में तीन २ भाग करें, प्रर्थात् मंडप का नव भाग करें। (श्राठ दिशा के मठ और एक मध्य वेदी का भाग जानें ) । इनमें उत्तर दिशा के भाग में स्नान मंडप बनावें । उसमें रेतीका शुद्ध स्थंडिल (भूमि) बनाकर उसके ऊपर शय्या में देव की स्थापना करें। पीछे पंचगव्य से, कषाय बर्ग को औषधियों से और क्षीरवृक्षों की छालों के चूर्ण से स्नात्रजल तैयार करें, उससे पांच २ कलश एक्सो बार भर करके देवको स्नान करावें ।।५५-५६ ॥ arendra.. वादि-गीतमङ्गल निःस्वनै । वस्त्रेणाच्छादयेवदेवं वेद्यन्ते मण्डपे न्यसेत् ||५७|| स्नान किया के समय वेदमंत्रों के उच्चारणों से, वाज की ध्वनियों से और मांगलिक गीतों से urera cवनिमान करें। स्नान के बाद देवको वस्त्रसे श्राच्छादित करके, पीछे ईशानकोन की वेदी के ऊपर स्थापित करें ॥५७॥ देवशयन तन्पमारोपयेद् वेद्या-मुत्तराट्री न्यसेत् ततः । कलशं तु शिरोदेशे पादस्थाने कमण्डलुम् ||२८||
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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