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________________ प्रासावमएडने Innsk-nundwar और ईशानकोणमें प्रष्टकोण, ये पाठ पूर्वदिशासे ईशानकोरण तक आठ दिवालों के कुण्ड हैं। तथा पूर्व और ईशान के मध्य भाग में नवां मावार्य कुण्ड गोल अथवा समचोरस बनावें। विशेष जानने के लिये देखें मंडप डसिद्धि आदि ग्रह।' मंडल एकद्वित्रिकरं कुर्याद् धेदिकोऽपरि मण्डलम् । ब्रह्मविष्णुस्त्रीणां च सर्वतोभद्रमिध्यते ॥४८॥ वेदिकाके आर एक, दो अथवा तीन हाथ के मानका मंडल बनायें । ब्रह्मा, विष्णु और सूर्य की प्रतिष्ठा में सर्वतोभद्र नामका मंडल बनावें ॥४ti भद्रं तु सर्वदेवानां भवनाभिस्तथा त्रयम् । लिङ्गोद्भवं शिरस्यापि लतालिङ्गोद्भवं तथा ॥४६॥ मब देवों की प्रतिष्ठा में भद्र नाम का मंडल, तथा नबनाभो अथवा तीन नाभि वाला लिगोद्भव मंडल बनावें । शिव को प्रतिष्ठा में लिंगोद्भत्र तथा लतालिङ्गोद्भव नाम का मंडल बनावें ॥४॥ भद्रं च गौरीतिलकं देवीनां पूजने हितम् । अर्धचन्द्रं तडागेषु चापाकारं तथैव च ॥१०॥ सब देवियों की पूजन प्रतिष्ठा मे भद्र और गौरीतिलक नाम का मंडल बनावें। तथा तालाव की प्रतिष्ठा में प्रर्धचंद्र चापाकार मंडरल बनावें ॥५०॥ दक्षाभं स्वस्तिकं चैव वापीपेषु पूजयेत् । पीठिकाजलपट्टषु योन्याकारं तु कामदम् ॥५१॥ वावडी और कुत्रों की प्रतिष्ठा में टंकाभ और स्वस्तिक मंडल का पूजन करें। पीठिका और जलबट्ट की प्रतिष्ठा में योनि के प्राकार का मंडल पूजने से सब कार्य सिद्ध होते हैं ।।५।। गजदन्तं महादुर्गे प्रशस्तं मण्डलं यजेत् । टङ्काम चतुरस्त्रं च गजदन्तं महायतम् ॥५२॥ बड़े किले की प्रतिष्ठा में गजदंत नामका मंडल पूजन करना प्रशस्त है । टंकाम मंडल का प्राकार चोरस है और गजदंत महल का प्राकार लंबा है ॥५२॥ विख्यातं सर्वतोभद्रं क्षेपमन्योऽन्यलोकतः । पूर्वादितोरणं प्लक्ष-यज्ञावटपिप्पलैः ॥५३॥
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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