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________________ प्रासादमयबने. Avi RAATNAL eNepal ..... m taxey मकान मण्डपकमभागतः । पासा युक्तिविधातव्या मरकुटान्तकल्पना ।।" सवंग और कूटके मध्य में दो भाग के विस्तारवाला और एक भाग के उदय वाला तलके भूषणरूप तिलक बना नवंगा और रथिका ये दोनों दो भाग के उदयवाले बनावें । अमतालीस कुटा, लघघण्टा और बारह सिंह वाली नन्दिनी नाम की संवरा शांति की इच्छा रखने वाले बनावें । समचोरस क्षेत्र के भागों में तिलककी वृद्धि करनी चाहिये । मंडप को विस्तार से प्राधा उदय में रक्खें । भूमि के बारह भाग को कल्पना करें। संवरसाय भिन्न और उद्भिन्न ११ बारमी भारी की भी संधी पनी सती. होतो हैं । मण्डप के अनुक्रम भाग से पचीसवों मेहकुटा नाम को संघरणा तक इस प्रकार युक्ति से अन्य संवरणायें बनावें। इति श्री मंडनसूत्र धार विरधित प्रासादमंडन के मंडप बलायक संव. रमा लक्षणवाला सातवां अध्याय की पंडित भगवानदास जैन ने सुबोधिनी नाम को भाषा टोका रचो ॥७॥ dt h meteranAMMA HDrest-MATHAXSEENERSun i ma mritution mondriandu-4200MLA Rapradfir matm HAR. Shi परा +
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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