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________________ " सप्तमोऽध्यायः १४१ " . . ... atetraviolent inusiatrinakeputattestetaMINine............... ...*tstatemidstindiAMEShadisiseDia तद्पा भद्रकूटाश्व शृङ्गाकटास्तवर्धतः । सिंहस्थाना कसंघण्टी बहरण्टी तदूर्ध्वतः ।। संवरणागर्भमूले रथिका दूध सविस्तरा | भागका चोदये कार्य भागा पक्षतङ्गिका ।। सदूचे उदूमो भाग-स्तवलोचे च कूटकः । सिंह वै उद्मोद्यं तु उरोधण्टा भागोपरि ।। तदुपरि सिंहस्थानं भागकं च विनिर्गतम् । तस्योपरि मूलघण्टा द्विभागा च भागोच्छया ॥ अष्टसिहः पञ्चघण्टेः टैरेवं द्विरष्टभिः । चतुभिर्मूलकूटा पुष्पिका नाम नामतः ।" ..."छज्जा के उदम के अर्धमान का कोने कोने के ऊपर घंटिका रक्खें। उसके जैसा भद्र का कूट बना व इससे आधे भाग का शृंगकूट रक्खें । कर्ण घंटी पर सिंह रवरखें । उसके ऊपर कोच में बड़ो घंटो रक्खें । संवरणा के गर्भ के मूल में दो भाग के विस्तार वाली रथिका बनावें और यह उदय में एक भाग को रक्खें । इसके दोनों तरफ तवंगा एक एक भाग की रक्खें और रपिका के ऊपर एक भाग उदय वाला उद्गम बनावें । तवंगा के अपर कूट रखें । उद्गम और बडी कर्णधंटी के ऊपर सिंह रक्खें, उसका निर्गम एक भाग रक्खें । उसके ऊपर दो भाग के विस्तारवाली और एक भाग का उदय वाली मूलघंटा रवखें। पाठसिंह ( चार कर्ण और चार भद्र के उद्गम पर) पांच बछो घंटो, सोलह कूट और चार मूलकूट वाली प्रथम पुष्पिका नाम की संवरशा होती है। दूसरी मन्दिनी नाम को संवरणा "सवङ्गक्टयोर्मध्ये तिलक द्वय शाबिस्तरम् ।। भागोययं विधातथ्यं संघाटभूषितम् ।। तबङ्गरथिकाश्चैव विभागोदयिनः स्मृताः । अष्टचत्वारिंशतकूटा मूले स्युः पूर्ववतथा ।। नवधष्टा समायुक्ता स्थाई द्वादशसिंहतः । नन्दिनी नामविख्याता कर्तव्या शान्तिमिच्छता ॥ कार्या तिलकवृद्धिश्च यावत्क्षेत्रं वेदास्रकम् । मण्उपदलनिष्काम भक्तिभागैस्तु कल्पना ।।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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