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________________ इन सब मूर्तियों की रचना रूप मण्डन अन्य में गणित नक्षणों के अनुसार यथार्थता हुई है। स्पष्ट है कि सूत्रधार मण्डन शास्त्र पौर प्रयोग दोनों के सियासी 1 शिल्प शास्त्र में वे जिन लक्षणों का उल्लेख करते थे उन्हीं के अनुसार स्वयं या अपने शिष्यों द्वारा देव मूणियों की रसना भी कराते जाते थे। किमो समय अपने देश में सूत्रधार मण्डन जैसे सहस्रों की संख्या में लब्ध कीति स्मपति और वास्तु विद्याचार्य हुए । एलोरा के कैलाश मन्दिर, खजुराहो के कंदरिया महादेव, भुबनेश्वर के लिङ्गराज, संजीर के मुहदीश्वर, कोणार्क के सूर्यदेउप प्रादि एक से एक भश्च देव प्रासादों के निर्माण का श्रेय जिन ... शिपामार्यों की कल्पना में स्फूरित हुआ और जिन्होंने अपने कार्य कौशल से उन्हें मूर्त रूप दिया वे सामुष धन्य थे और उन्होंने ही भारतीय संस्कृति के मार्गदर्शन का शाश्वत कार्य किया। उन्हीं की परम्परा में सूमधार मण्डन भी थे। देव-प्रामार एवं सूफ मंदिर प्रादि के निर्माण कर्ता सुत्रधारों का कितना अधिक सम्मानित स्थान था यह मण्डन के निम्न लिखित श्लोक में जात होता है--- .........mandal "इत्यनन्तरतः कुर्यात्. सूत्रधारस्प पूजनम् । भूवितास्थान का --गॉमहिायश्ववाहनः ।। पन्येषा शिल्पिना पूजा कत्तया कर्मकारिणाम् । स्वाधिकारानमारण बस्त्रताम्बुलभोजन. .......72 3rdast काष्ठपापारण निर्माणकारिणो यत्र मन्दिरे । भुखलेऽसो तत्र सौख्यं शरत्रिदीसह ।। पुण्यं प्रासाद स्वामी प्रार्थ यत्सूत्रधारतः । सूत्रपारो देव स्वामिनक्षयं भवतासव।। प्रासादमण्डनः ८.८२-१५ प्रति निर्माण की समारिस के प्रनन्तर सूत्रधार का पूजन करना चाहिये और अपनी शक्ति के अनुमार भूमि, सुवर्ण, वस्त्र, अलङ्कार के द्वारा प्रधान सूत्रधार एवं उनके सहयोगी अन्य शिल्पियों का सम्मान करना प्रावश्यक है। जिस मन्दिर में शिला या काम द्वारा निर्माण कार्य करने वाले शिल्पी भोजन करसे हैं वहीं भगवान शंकर देवों के साथ विराजते हैं। प्रासाद पा देव मन्दिर के निर्माण में जो पुण्य है उस पुण्य की प्राप्ति के लिये अश्रधार से प्रार्थना करनी चाहिए, 'हे सुत्रधार, तुम्हारी कृपा में प्रासाद निर्माण का पुग्य मुझे प्राप्त हो। इसके उत्तर में सूत्रधार कहे स्वामिन ! सब प्रकार प्राय की प्रक्षय वृद्धि हो । सूत्रधार के प्रति सम्मान प्रदर्शन की यह प्रथा सोक मैं आजतक जीवित है. जब सुधार विस्पी नसन ग्रह का द्वार रोककर स्वामी से कहता है 'आजतक बह गृह मेरा था, अब पाज से यह तुम्हारा हया । उसके अनन्तर गृह स्वामी सूत्रधार को इष्ट-वस्तु देकर प्रसन्न करता है और फिर गृह में प्रवेश करता है। मूत्रधार मण्डन का प्रासाद मण्डन ग्रन्थ भारतीय शिल्प अन्यों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है । मण्डन ने पाठ अध्यायों में देव-प्रासादों के निर्माण का स्पष्ट और विस्तृत वर्णन किया है । पहले अध्याय में विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम सूत्रधार कहा गया है । गृहों के विन्यास और प्रवेश की जो मार्मिक विधि
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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