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________________ मा के समय में उनका राजकीय स्थपति पा । इससे विदित होता है कि राणा कुमा के बाद भी सूत्रधार मापन के वंशज राजकीय शिल्पियों के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने ही उदयपुर के प्रसिद्ध जगदीश मंदिर और उदयपुर से मानीस मील दूर कांकरोली में बमे हुए राज समुद्र सागर का निर्माण किया। ... राणा कु'भा के राज्य काल मै राणकपुर में सूत्रधार देपाक ने विक्रम सं. १४६६ (१४३६ ई.) में सुप्रसिद्ध भैन मन्दिर का निर्माण किया । कुना की पुत्री रमा बाई ने कुभलगढ़ में दामोदर मंदिर के निर्माण के लिए सूत्रधार शमा को नियुक्त किया। सूत्रधार मण्डन को राणा कुभा का पूरा विश्वास प्राप्त था । उन्होंने कुंभलगढ़ के प्रति दुर्ग की भारत-कल्पमा और निर्माण का कार्य सूत्रधार मण्डन को सं. १५१५ (१४५८ई.) में सौंपा । यह प्रसिद्ध दुर्ग प्राज भी मषिमाया में सुरक्षित है, और मण्डन को प्रतिभा का साक्षी है । उदयपुर से १४ मील दूर एकलिंग जी नामक भगवान शिव का सुप्रसिद्ध मन्दिर है । उसी के समीप एक अन्य विषाणु मन्दिर भी है। श्री रस्तमन्द मनाल का अनुमान है कि उसका निर्माण भी मूत्रधार मण्डन ने ही किया भा । उस मंदिर की भित्तियों के बाहर की मोर तीन रथिकाएं हैं। उनमें मृसिंह वराह-विषाणुमुत्री तीन मूर्तियां स्थापित हैं। उनकी रकमाए मण्डन ग्रंथ में परिणत लक्षणों के अनुसार ही की गई है। एक अष्टभुजी मूर्ति भगवान वैकण्ड की है। सरी जी मति भगवान अनंत की है और तीसरी सोलह हाथों वाली मति ....... अलीय मोहन की हैन अधार मण्डन ने अपने रूपमण्डल के तीसरे अध्याय में (श्लोक ५३-६२ दिये हैं। .इनके अतिरिक्त सूत्रधार मण्सन ने और भी कितनी ही ब्राह्मण धर्म संबंधी देव मूर्तियां बनाई थी। उपलब्ध मूर्तियों की चौकियों पर लेख उस्कोर हैं । जिनमें मूर्ति का नाम राणा बुभा का नाम पोर सं. १५१५-१५१६ की निर्माण शिथि का उल्लेख है। ये मूर्तियां लगभग कुभलगढ़ दुर्ग के साथ ही बनाई गई थी । तब तक दुर्ग में किसी मंदिर का निर्माण नहीं पा था, अतएव ये एक वट वृक्ष के नीचे स्थापित कर दी गई थी। इस प्रकार की छः मातृका पूर्तियां उदयपुर के संग्रहालय में विद्यमान हैं जिन पर इस प्रकार लेख है ......... "स्वस्ति श्री सं० १५१५ वर्षे तथा धाके १३८० प्रवर्तमाने फाल्गुन शुधि १२ बुधे पुष्य नक्षत्रे श्री कुभल मेस महादुर्गे महाराजाधिराज श्री कुभकर्म पृथ्वी पुरन्दरेरण श्री ब्रह्माणी मूर्तिः मस्मिन वटै स्थापिता। शुभं भवत ।। श्री।" इसी प्रकार के लेख माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, बाराही और ऐन्दी मूर्तियों की सररण चौकियों पर भी हैं । इसी प्रकार चतुर्विशति धर्म की विष्णु मतियों का भी रूप मण्डन में (अध्याय ३,रसोक १०-२२) विशद अर्गन मामा है । उनमें से १२ मूर्तियां कुभलगढ़ से प्राप्त हो चुकी हैं जो इस समय उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं । ये मूर्तियां भगवान विष्णु के संकर्षण, माश्य, मधुसूदन, अधोक्षज, प्रद्युम्न, केशव, पुरुषोत्तम, अनिरुद्ध, वासुदेव, दामोदर जनार्दन और गोबिन्द ए की हैं। इनकी चौकियों पर इस प्रकार लेख हैं..... ___ "सं० १५१६ ख शाके १३५२ वर्तमाने पाश्विन शुद्ध ३ श्री कुभमेरी महाराज श्री कुभकरणनि बटे संकर्षण मूर्ति संस्थापिता शुभं भवतु ॥" १-दे. रत्नचन्द्र अग्नवाल, राजस्थान की प्राचीन मूर्तिकला में महाविष्णु संबंधी कुछ पत्रिकाएं, शोधपत्रिका, उदयपुर, भाग ६, अंक १ (पौष, वि० सं० २०१४ ) पृ. ६, १४, १७ ।। २- रत्नचन्द्र अग्रवास रूप मण्डन तमा कुभलगढ़ से प्राप्त महत्वपूर्ण प्रस्तर प्रतिमाएं, शोष पत्रिका. भाग - अंक ३ (क्षेत्र, वि० सं० २०१४), पृ० १-१२
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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