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________________ 549568 १२२ प्रासादमरहने S AALCinema t urtannadanioadfortineopan पच्चास हाथ के विस्तार वाले प्रासाद का स्तंभ पौन पौन अंगुल बढाकर स्तंभ का विस्तार करना चाहिये। स्तंभका अन्य विस्तार मान "एक हस्ते तु प्रासादे स्तम्भः स्याच्चतुरङ्गलः । सप्ताङ्गलच द्विहस्ते विहस्ते तु नवाङ्गलः ।। द्वादशाङ्गलविस्तारः प्रासादे चतुर्हस्तके । चतुर्हस्तादितः कृत्वा यावद् द्वादशहस्तकम् ।। सार्धामुला भवेद् वृद्धिः प्रतिहस्ते विवद्धयेत् । द्वादशहस्तस्योवं तु यावत् शिद्धरतकम् ।। अङ्गलेका ततो वृद्धि हस्ते हस्ते प्रदापयेत् । प्रत उध्वं ततः कुर्याद् यावत्पश्चाशद्धस्तकम् ॥ अर्धाङ्गला भवेद् वृद्धिः कर्तव्या शिल्पिभिः सदा । उच्द्रयं चतुगुणं प्रोक्त-मेतरस्तम्भस्य लक्षणम् ।।" HिRIMदीपावे। एक हाथ के प्रासाद में स्तंभ का विस्तार चार अंगुल, दो हाथ के प्रासाद में सात अंगुल, तीन हाथ के प्रासाद में नव अंगुल और चार हाय के प्रासाद में बारह अंगुल रक्खें । पीछे पांच हाथ से बारह हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाय डेढ डेढ अंगुल, तेरह हाथ से तीस हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाथ एक एक अंगुल और इकतीस से पचास हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाथ प्राधा प्राधा अंगुल बढा करके स्तंभ का विस्तार रखें और विस्तार से चार मुणो स्तंभ की ऊंचाई रक्खें। प्राग्नीव मंडप--- द्वारा स्तम्भवेद्याचा प्रारमीत्रो मण्डपो भवेत् । द्विदिस्तम्भविशुद्धया च षोडशैवं प्रकीर्तिता ॥१५॥ प्रासाद के द्वारके आगे दो स्तभवाली प्रथम वेदी है, वह प्रामग्रीय मंडप है। उनमें दो २ स्तंभ बढ़ाने से सोलह प्रकार का प्राग्रीव मंडप होता है ।।:५॥ विशेप जानने के लिये देखो अपराजितपूच्छा सूत्र १८८ श्लोक १ से ११ पाठ जाति के गढ मंडप मितिः प्रासादव गूढे मण्डपेऽष्टविधेषु च । चतुरस्त्रः सुमद्रव तश प्रतिरथान्वितः ॥१६॥ more MAmi-immipivyimoment... ... .............
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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