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________________ सप्तमोऽध्यायः स्तंभ का विस्तारमान और भेद प्रासादात् दशरुद्रार्क-भागेन स्तम्भविस्तरः । वेदाष्टरविविंशत्यः कर्णा वृत्तस्तु पञ्चधा ॥१४॥ प्रासाद के दसवां, ग्यारहवां अधवा बारहवां भागके बराबर स्तंभ का विस्तार (मोटाई) रक्खें। तथा चार, पाठ, बारह और वीस कोना काला और गोल, ऐसे पांच प्रकार के स्तंम हैं ॥१॥ अपराजितपुच्या सूत्र १८४ श्लोक ३५ में तेरहयां और चौदहा भाग के बराबर भी स्तंभ का विस्तार रखना लिखा है। प्राकृति से स्तंभसंज्ञा "चतुरखा रथका भरमा जसंसाः ! ধনানা: সনি সেখাহী জাগ: प्रासनोर्वे भवेद् भद्र-मकरसंस्तु स्वस्तिकाः । प्रकर्तव्या पञ्चविधाः स्तम्भाः प्रासादरूपिणः ।}" अप० सू० १८४ पार कोना वाला चतुरस्त्र, भवाला भद्रक, प्रतिरथवाला बर्द्धमान, पाठ कोना पाला प्रष्टान और पापन के कार से भद्र और प्रा3 कोना वाला स्वस्तिक नाम का स्तंभ कहा जाता है। मे पांच प्रकार के स्तंभ प्रासाद के अनुसार बनाना चाहिये । क्षौरानग्रंथ के अनुसार स्तंभ का विस्तार मान "एकहस्ते तु प्रासादे स्तम्भः स्याच्चतुरङ्गलः । द्वो हस्ते चागुलं सप्त विहस्ते च नवाङ्गलः ॥ तस्योवं दशहस्तानां हस्ते हस्ते च द्वधनुला । सपादाङ्गला वृद्धिः स्यात् विशदस्ते यदा भवेत् । अङ्गलेका ततो वृद्धिश्चत्वारिंशश्च हस्तके । तस्योपं च शताद्धं च पादोनमडगुलं भवेत् ।।" . एक हाथ के विस्तार वाले प्रासाद का स्तंभ चार अंगुल, दो हाथ के प्रासाद का स्तंभ सात अंगुल, तीन हाथ के प्रासाद का स्तंभ नब अंगुल, पार से दश हाँध के प्रासाद का स्तंभ प्रत्येक हाम दो दो अंगुल, ग्यारह से श्रोस हाय के प्रासाद का स्तंभ प्रत्येक हायसवा सवा अंगुल, इकतीस से चालीस हाथ के प्रासाद का स्तंभ प्रत्येक हाथ एक एक अंगुल और इकतालीस से NAGAR RARideo MARWAAmaleontinuicidai.Aaslescencil-000mpower
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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