________________
ShreeKancemessmomer:-*-back.
अथ प्रासादमण्डने षष्ठोऽध्यायः केसरी मावि पचीसप्रासाओं के नाम--
केसरी सर्वतोभद्रो नन्दनो 'नन्दशालिक । नन्दीशो मन्दररक्षेत्र "श्रीवश्चामृतोद्रयः ॥१॥ हिमवान् हेमकूटरच कैलासः पृथिवीजयः । इन्द्रनीलो महानीलो भूधरो रस्नकूटकः ॥२॥ वैडूर्यः पथरागरच बजको मुकुटोज्वलः । ऐरावतो राजहंसो गरुडो वृषभध्वजः ॥३।। मेरुः प्रासादराजः स्याद् देवानामालयो हि सः ।
ब्रह्मविष्णुशिवार्काणा-मन्येषां न कदाचन ॥४॥ कसरो १, सर्वतोभद्र २, नन्दन ३, मादशालिक ४, मन्दीश ५, मन्दर ६, श्रीवृक्ष ७, अमृतोद्भव ८, हिमवान ६, हेमकूट १०, कैलाश ११, पृथिवीजय १२, इन्द्रनील १३, महानील १४. भूषर १५, रत्नकूटक १६, वैडूर्य १७, पराग १८, वचक १६, मुकुटोज्ज्वल १०, ऐसयस २१, राजहंस २२, गरुड २३, वृषभध्वज २४, और मेरु २५, ये प्रासादों के पच्चीस माम हैं । मेरु प्रासाद सब प्रासादों का राजा है और उसमें देवोंका निवास भी है, इसलिए यह मेर प्रासाद ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सूर्य, इन देवों के लिए बनाना चाहिये, परन्तु दूसरे देवों के लिए यह नहीं बनाना चाहिये ।।१ से १।। पचीस प्रासादों की श्रृंग संख्या---
प्रायः पाण्डको झेयः केसरीनाम नामतः ।
"तापदन्तं चतुच द्धि-विदेकोत्तरं शतम् ॥५॥ प्रथम केसरी नामका प्रासाद पांच शृगवाला है । (चार कोने पर पार पोर एक मुख्य शिखर इस प्रकार पांच) । अंतिम प्रासाद तक श्येक प्रासाद के ऊपर अनुकमसे चार २ भृग बढानेसे पच्चीसवें मेरुप्रासादक पर एक सौ एक श्रृंग होते हैं ।।५।। १. 'मन्दियामका'। २. 'मन्दिर'। ३, 'श्रीवत्स'। ४. 'चतुर्णा क्रमतो वृधिः'।