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________________ प्रासादमण्डने --+- 1- " ansteadyw सलमान भाग ( शिखर ) पर और सब मांगलिक स्थानों में विद्वान लीग स्थापित करते हैं ।।३६।। कलश का उदयमान पूर्वोक्तमा तो ज्येष्ठः पोडशांशाधिको भवेत् । द्वात्रिराईशतो' मध्यो नवांशोऽभ्युदयं भवेत् ॥३७॥ ग्रीवापीठं भवेद् भागं त्रिभागेनाण्डकं तथा । कणिक भागतुल्ये च त्रिभागं बीजपूरकम् ॥३८॥ पूर्वोक्त श्लोक २५ में कलश का जो मान लिखा है, उसका मान में उसका सोलहवां भाग बढावें तो ज्येष्ठ मान का और बत्तीसवां भाग बड़ा तो मध्यम मान के कला का उदय होता है। जो उदय पाये उसका नये भाग करें, उन में से एक भाग की ग्रीवा और पीठ, तीन भाग का HARTR 3. शनि अंडक ( कलश का पेट ), दोन्: करिएका ( एक छज्जी और एक कणो ) एक २ भाग और तीन भाग का बीजोरा उदय में रखें ।। ३७-३८|| कलश का विस्तार मान---- एकांशमग्रे द्वो मूले बहिवेदांशकणिके । ग्रीया द्वी पीठमळू बी पड्भागं विस्तराण्डकम् ॥३६॥ इति कलशः। बीजोरा के अग्र भाग का विस्तार एक नाग और मूल भाग का विस्तार दो भाग, ार को कणों का विस्तार तीन माग, नीचे की 4जी छाजली) का विस्तार चार भाग, पना का विस्तार दो भाग, प्राधी पीठ का विस्तार दो भाग (पुरो पीट का विस्तार चार भाग) और कलश के पेटका विस्तार छह भाग हैं ॥३६॥ १'तावदेशोनः कनीयो ....... mind... LIC L-....- ital htamann
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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