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________________ ""tini ८६ प्रासादमखने सुवर्णपुरुष (प्रासाद पुरुष) का स्थापनक्रम-- वृतपानं न्यसेन्मध्ये वानवारं सुबरजम् । सौवर्णपुरुष तत्र तुलीपर्यवशायिनम् ॥३४॥ आमलसार के गर्भ में धो से भरा हुमा सोना, चांदी अथवा तांबे का कलश सुवर्णपुरुष के पास रखना चाहिये । तथा चाँदी अथवा बंधन का पलंग रक्खें, उसके ऊपर रेशम को शय्या बिछा करके, उस पर सुबर्णपुरुष को शयन करावें । यह विधि शुभ दिन में वास्तु पूजन करके करनी चाहिये । क्योंकि यह प्रासाद का मर्मस्थान ( जीवस्थान ) है ॥३४॥ सुवर्ण पुरुष का मान और उसकी रचना--- प्रमाणं पुरुषस्यार्धा-गुलं कुर्यात् करं प्रति । त्रिपताकं करे यामे हृदिस्थं दक्षिणाम्बुजम् ॥३५॥ प्रासाद पुरुष का प्रमाण प्रासाद के विस्तार के अनुसार प्रत्येक हाथ प्राधा २ अंगुल बढ़ा करके बनावें । अर्थात एक हाथ के प्रासाद में प्राधा अंगुल, दो हाय के प्रासाद में एक अंगुल, तोन हाथ के प्रासाद में डेढ़ अंगुल और चार हाथ के प्रासाद में दो अंगुल, इस प्रकार प्रत्येक हाथ प्राधा २ अंगुल बढ़ा करके बनावें। इस सुवर्णपुरुष के बांये हाथ में ध्वजा रखकर के यह छाती पर प्रौर दाहिना हाथ कमलयुक्त रबरवें ॥ ३५॥ .. अपराजितपृच्छासूत्र १५३ में कहा है कि-- "प्रथातः सम्प्रवक्ष्यामि पुरुषस्य प्रवेशनम् । न्यसेन देवालयेष्वेवं जीवस्थानफलं भवेत् ।। छादनोपप्रवेशेषु शृङ्गमध्येऽयवोपरि । शुकनासावसानेषु वेद्य र्षे भूमिकान्तरे ।। मध्यगर्भ विधातव्यो हृदय वर्णको विधिः । हंसतुली ततो कुर्यात् ताम्रपर्थसंस्थिताम् । " D iction . . one... t grosse RExamingapanes neuronmen *कुछ शिल्पियों का मत है कि---घीसे भरा हुमा सोना, चांदी प्रयदा ain के कलश में सुवर्ण पुरुष को रखकर के, वह कलश पलंग पर रखें। (१) 'दक्षिणं करम्'।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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