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________________ में हुई थी। अन्य भी कई प्राकृत भाषा के जैन ग्रन्थ उस काल में वहाँ रचे गये । प्रतीत होते हैं। सातवाहन राज्य में जैन मुनियों का स्वच्छन्द विहार था। उन्हीं के काल में जैन संघ दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सम्प्रदायों में विभक्त हुआ और उनका राज्य उन दोनों सम्प्रदायों के साधुओं का सन्धि-स्थल था 1 दिगम्बर परम्परा के षट्खण्डागम आदि जैन आगमों का सर्वप्रथम संकलन एवं पुस्तकीकरण सम्भवतया उन्हीं के राज्य में उसी काल में हुआ था। नहपान HE EHIKAYAAVARTHI S H ARMARRIRANImmoriandeyumanARA A RTerencodilevagwatcomeaanHeARKARTATERawalNTANCERS.13 200cc wwwckekarescene मालय-वीर विक्रमादित्य में जिन शकशाहियों की मालवा से निकाल बाहर किया था, उसका नेता सम्भवतया घटक या भूमक था जिसने सौराष्ट्र के शक महरात वंश की नींव डाली। एक और मालवा के विक्रमादित्य और दूसरी ओर पैठन के सातवाहनों के कारण क्षहरातों की शक्ति सीमित बनी रही, किन्तु प्रथम शताब्दी 'ईसाही नेम पूर्ण बहुत शक्तिशाली हो गये। उस समय नहपान सौराष्ट्र-गुजरात का लहरात था। वह इस वंश का सर्वप्रसिद्ध, महत्वपूर्ण एवं प्रतापी मरेश था। जैन साहित्य में उसका नहवाल, नरवाहन, नभोवाहन, नमसेन, नरसेन आदि नामों से उल्लेख हुआ है। उसे वम्पिदेश का राजा बताया है और उसकी राजधानी का नाम वसुन्धरा था जो सम्भवतया भृगुकच्छ (भडौच) का ही अपर नाम या। नहपान की रानी का नाम सुरूपा था जो भारतीय रही प्रतीत होती है। नहपान का भालीस वर्ष का राज्यकाल गर्दभिल्लवंश एवं भद्रचष्टम वंश के मध्य पड़ता है जो लगभग सन 2006 ई. निश्चित होता है । यूनानी भूगोलवेत्ता हालेमी ने 'मी मोच के इस नरेश का उल्लेख किया है। नहपान के अपने तथा उसके जामाता उपवदात (ऋषभदत्त के तघा तुयोग्य मन्त्री अयम के कई शिलालेख प्राप्त हुए हैं जो वर्ष इकलातीस से छियालीस तक के हैं। सम्भवतया नहपान के पूर्वज भूमक ने या स्वयं महपान ने अपने राज्यारम्भ में मालवा के बहभाग पर अधिकार करके यह नवीन वर्षगणना चालू की थी। उज्जयिनी को प्राप्त करने के लिए महरातों और सातवाहनों के बीच प्रायः निरन्तर संघर्ष चलता रहा। अन्ततः गोमतीपुत्र शातकाण ने भृगुकच्छ पर आक्रमण करके नहपान को पराजित किया। परिणामस्वरूप महपान ने राज्यभार जामाला ऋषमदत, मन्त्री अबम और सेनापति यशोमति को सौंपकर स्वयं जिनदीक्षा ले ली प्रतीत होती है। इस समय तक इन शकों का प्रायः पूर्णतया भारतीयकरण हो चुका था। उन्होंने भारतीय आचार-विचार, भाषा, नाम, वेशभूषा, रीतिरिवाज, धर्म और संस्कृति अपना लिये थे। एक जैन अनुश्रुति के अनुसार इसी महाराज नरवाहन ने अपने मिन्न मगधनरेश को मुनिरूप में देखकर उनकी प्रेरणा से सुबुद्धि नामक अपने धनकुवेर राज्यष्टि एवं मित्र के साथ मुनिदीक्षा ले ली थी। उस समय दक्षिणात्य जैमसंघ के नेता लंघाचार्य अर्हदलि थे । वही सम्भवतः राजा नरवाहन और SHARE MASHION 78 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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