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स्थापना की और मृत्यु से एक वर्ष पूर्व अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति जनहितार्थ तथा जैनधर्म की रक्षा एवं प्रचार के लिए ट्रस्ट कर गये। प्रसिद्ध कर्मवीर, जैन समाज के कर्मठ सेनानी आरा के कुमार देवेन्द्रप्रसाद, जैनधर्म के समर्पित प्रचारक ब्रह्मचारी शीललप्रसाद और लखनऊ के पण्डित अजितप्रसाद वकील उनके कानों में विशेष सहयोगी एवं सहायक रहे।
सेठ बालचन्द दोसी...शोलापुर के सेठ हीराचन्द दोसी के सुपुत्र सेठ बालचन्द बोसी का जन्म 1882 ई. में अति साधारण आर्थिक स्थिति में हुआ था, किन्तु 1953 ई. में अपनी मृत्यु के समय वह करोड़ों की सम्पत्ति के स्वासी थे। भारतीय प्रयोग के यह महान् स्वयंसिद्ध पुरुष भारतीय जहाज-उद्योग के पिता माने जाते हैं। आर्थिक अभ्युदय के ऐसे अध्वर्यु इतिहास में कम ही देखने में आते हैं। वह निस्सन्तान थे, अतएव अपनी समस्त निजी सम्पत्ति का लोकहितार्थ ट्रस्ट भी कर गये। उनके भाई सेठ रतनचन्द आदि बम्बई के प्रसिद्ध व्यवसायी हैं।
राजा ध्यानचन्द-मेरठ का एक प्रायः निर्धन किन्तु साहसी युवक उम्मीसयों शताब्दी के अन्त के लगभग बम्बई चला गया। फोटोग्राफी का शौक था, उसे ही जीविकाकासन बजायो से
मिष्ट में आ गया तो न केवल अपनी कला और व्यवसाय में ही अद्भुत उन्नति की, निाम से "मुसविरुदौला' और 'राजा' के ख़्तिाय प्राप्त कर लिये।
सर फूलचन्द मोघा-इत्तर प्रदेश के अँगरेज़ी शासन की सेवा में उन्नति करते-करते उस प्रान्त के सर्वप्रथम भारतीय लीगल रिमेम्ब्रेन्सर हुए और तदनन्तर कश्मीर नरेश ने उनकी सेवाएं उधार लेकर उन्हें अपना मन्त्री बनाया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के कुछ पूर्व ही उनकी मृत्यु हुई।
साहु सलेखचन्द के वंशज साहु सलेखचन्द नजीबाबाद जिला बिजनौर के ख्याति प्राप्त, सम्पन्न जमींदार, साहुकार, धर्मात्मा एवं दानशील सज्जन थे। लगभग 75 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु पर्यन्त नीरोग, स्वस्थ और कर्मठ रहे। नियम-धर्म के पक्के और उच्चकोटि के धर्मग्रन्थों के सतत स्वाध्यायी थे। जरूरतमन्दों की बहुधा गुप्त सहायता किया करते थे। जिले के प्रमुख सम्मानित व्यक्तियों में थे। उनके ही एक पौत्र नजीबाबाद के प्रसिद्ध रायबहादुर साह जुगमन्दरदास थे, जिनका जन्म 1884 ई. में हुआ था और निधन 1933 ई. में मसूरी में हुआ था। छह वर्ष तक वह जिलाबोर्ड के अध्यक्ष रहे, वर्षों दिगम्बर जैन महासभा के मन्त्री और दिगम्बर जैन परिषद के कोषाध्यक्ष रहे । परिषद् के सहारनपूर अधिवेशन के सभापति भी हुए। हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र कपेटी के भी बराबर कोषाध्यक्ष रहे। प्रायः सभी अखिल भारतीय जैन संस्थाओं, जैन नेताओं, विद्वानों और श्रीमानों से उनका सम्पर्क या सम्बन्ध था। स्थितिपालक भी थे और सुधारक भी, राज्यभक्त थे और स्वदेशप्रेमी भी। बड़े
39t) :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ