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महमदतका आवाज श्री सुविधा की ख प्रतिभा के बल पर उस पेशे की चोटी पर पहुँच गये। रायसाहब, रायबहादुर, सर, डॉक्टर आफ लॉ, दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइसचान्सलर (उपकुलपति), दिल्ली और पंजाब हाईकोर्टों के प्रमुख वकील, अन्ततः पंजाब हाईकोर्ट के जज हुए। सफलता, लक्ष्मी और यश तीनों का ही प्रभूत उपयोग किया। सन् 1880 ई. के लगभग उनका जन्म हुआ था और 1930 ई. में उनका देहान्त हुआ।
रायसाहब प्यारेलाल वर्तमान शताब्दी में दिल्ली के सर्वोच्च कोटि के वकील, महान शिक्षा शास्त्री जननेता और जैन समाज के प्रमुख नेताओं में से थे। सरकारी क्षेत्रों में भी उनका विशिष्ट मान था। रायबहादुर पारसदास, रायबहादुर सुलतानसिंह, सर मोतीसागर, रायबहादुर नन्दकिशोर, जो उत्तरप्रदेश शासन के सर्वप्रथम जैन सम्भवतया भारतीय भी सुपरिण्टेण्डिंग इंजीनियर थे, रायबहादुर जगत प्रकाश, जो भारत सरकार के सर्वप्रथम भारतीय डिप्टी आडीटर जनरल तथा एकाउण्टेण्ट-जनरल हुए इत्यादि विभूतियों ने प्रायः उसी युग को सुशोभित किया था।
कर्णचन्द नाहर - कलकत्ता के प्रसिद्ध वकील, जैन पुरातत्त्व के प्रेमी एवं अन्वेषक, जैन लेखसंग्रह, एपीटीम ऑव जैनिज़्म आदि कई ग्रन्थों के प्रणेता, तीर्थ भक्त और समाजसेवी थें। उनके सुपुत्र विजयसिंह नाहर स्वातन्त्र्य संग्राम के सेनानी और पश्चिमी बंगाल के मन्त्रिमण्डल के वर्षों तक सदस्य रहनेवाले समाजसेवी सज्जन हैं। उनका जन्म 1875 ई. और निधन 1936 ई. में हुआ था ।
जगमन्दरलाल जैनी - सहारनपुर के सम्पन्न अग्रवाल जैन परिवार में 1881 में इनका जन्म हुआ था । इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की और 1902 ई. में वहीं से अँगरेजी साहित्य में प्रथम श्रेणी में एम.ए. परीक्षा पास करके उस विश्वविद्यालय में अँगरेजी के प्राध्यापक और छात्रावास के वार्डन नियुक्त हो गये। तीन वर्ष पश्चात् 1906 ई. में इंगलिस्तान चले गये और चार वर्ष पर्यन्त वहाँ के प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। अन्य योग्यताओं के साथ वैरिस्टरी ऐसी चमकी कि एक मुकदमे की पैरवी प्रिवी कौन्सिल में करने के लिए उन्हें लन्दन मेजा गया । तदनन्तर 1914 ई. से 1927 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त वह इन्दौर राज्य के न्यायाधीश एवं व्यवस्था विधि-विधायिनी सभा के अध्यक्ष रहे। बीच मैं 1920- 1922 ई. तक दो वर्ष वह इन्दौर नहीं रहे थे, तो अँगरेजी सरकार ने उन्हें रायबहादुर की उपाधि और आनरेरी असिस्टेण्ट कलक्टरी आदि प्रदान की थी। राज्यकार्य के अतिरिक्त वह अपना सारा समय जैन साहित्य की साधना में लगाते थे। अँगरेजी जैन-गजट के उसके जन्मकाल 1904 से लेकर अपनी मृत्यु पर्यन्त सम्पादक बने रहे। तत्वार्थसूत्र, आत्मानुशासन, पंचास्तिकाय, समयसार, गोम्मटसार जैसे महान् सैद्धान्तिक ग्रन्थों का अँगरेजी में उत्तम अनुवाद किया, अन्य भी कई पुस्तकें लिखीं। सेण्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, जैन लायब्रेरी (लम्दन) आदि की उन्होंने
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