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________________ कर दी और उसे अन्य प्रकार से त्रस्त किया। स्वाभिमानी ठाकुर ने झकने के बजाय आत्महत्या कर ली और उसकेको अधिकार हुआ। राजा ने प्रसन्न दुग होकर उसे 'राव' की उपाधि, शिरोपाव और हाथी प्रदान करके पुरस्कृत किया। इसके बाद ही अमरचन्द के दुर्भाग्य का आरम्भ हुआ। उसने अनेक शत्रु उत्पन्न कर लिये थे, जिन्होंने एक भारी षड्यन्त्र रचकर उसे अपराधी सिद्ध किया और फलस्वरूप पदच्युत एवं भारी अर्थदण्ड से दण्डित कराया। इतना ही नहीं, 1817 ई. में उसपर यह झूठा आरोप लगाकर कि वह अमीरखाँ पिण्डारी से मिलकर राज्य के विरुद्ध षड्यन्त्र कर रहा है, उसे मृत्युदण्ड दिलाया गया । जैसलमेर राज्य मेहता स्वरूपसिंह जैसलमेर के भाटी राजपूत वंश का राजा मूलराज ( मूलसिंह ) 1761 ई. में गद्दी पर बैठा। उसने जैनधर्मानुयायी मेहता स्वरूपसिंह को अपना प्रधान मन्त्री बनाया। वह राजा का कृपापात्र, साहसी, पराक्रमी, शक्तिशाली, नीतिनिपुण, कुशल मन्त्री था। किन्तु इसी कारण अनेक लोग उससे ईर्ष्या करते थे, उसके शत्रु हो गये और उसका पराभव करने के लिए प्रयत्नशील हो गये । मन्त्री मे युवराज रायसिंह का जेबखर्च नियमित कर दिया तो वह भी उसके शत्रुओं के द में मिल गया । अन्ततः कुक्रियों का चक्र चल गया और एक दिन सरे दरबार मेहता की हत्या कर दी गयी। राजा यह देखकर दुख और क्रोध से अधीर हो उठा, किन्तु आततायियों को कोई दण्ड न दे सका, उलटे उनसे भयभीत होकर महलों में चला गया। अब युवराज और उसके साथी सामन्तों की बन आयी और उन्होंने राजा को ही कारागार में डाल युवराज को गद्दी पर बैठा दिया। किन्तु लगभग तीन मास के उपरान्त ही एक वीर महिला की सहायता से राजा बन्दीगृह से मुक्त हुआ और पुनः अपने सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसने तत्काल युवराज तथा उसके साथी सामन्तों को राज्य से निर्वासित कर दिया। मेहता सालिमसिंह मेहता स्वरूपसिंह का पुत्र था जो अपने पिता की मृत्यु के समय केवल 11 वर्ष का किशोर था, तथापि राजा मूलराज ने पुनः राज्याधिकार प्राप्त करते ही होनहार सालिमसिंह को ही अपना मन्त्री बनाया। अल्प वय में ही सालिमसिंह बड़ा चतुर, साहसी, मितभाषी और नीतिकुशल था। अपने पिता की हत्या को वह नहीं भूला और शत्रुओं से प्रतिशोध लेने के अवसर की ताक में रहने लगा । शत्रु भी उससे चौकन्ने थे। जोधपुर नरेश के राज्याभिषेक के अवसर पर वह अपने राजा की ओर से उसका अभिनन्दन करने के लिए जोधपुर गया था। वापसी में उसके पिता के शत्रुओं ने उसकी हत्या के उद्देश्य से छल से उसे पकड़ लिया, किन्तु अपनी चतुराई के बल पर वह उनके चंगुल से निकल आया और सुरक्षित जैसलमेर जा पहुँचा। फिर भी साम की नीति का प्रयोग करने के लिए उसने निर्वासित सामन्तों आधुनिक युग : देशी राज्य : 361 mr
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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