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________________ गोम्मटेश के रक्षक समझते रहे, उन्हीं की पूजा-भक्ति भी करते रहे और अन्य प्रकार भी जैनधर्म एवं जैनों का पोषण करते रहे। 1609 ई. के लगभग श्रवणबेलगोल में सोमनाथपुर निवासी और पण्डितदेव के शिष्य काश्यपगोत्री ब्राह्मण सेनवो सावन और महादेवी के प्रिय पुत्र परम जिनभक्त हिरियन ने गोम्मटस्वामी के घरणारविन्द की थम्दना करके मुक्तिपथ प्राप्त किया था। सामराज ओडेयर-मैसूर नरेश महाराज ओडेयर ने 1634 ई. मैं बेलगोल की भूमि के चन्नम आदि विभिन्न रहनदारों को बुलाकर उनसे उक्त भूमि की रहन से मुक्त करने के लिए त बालिन रुपमा स्वयं राज्य से ले लेने के लिए कहा तो उन लोगों ने वह भूमि बिना कुछ लिये ही अपने पूर्वजों के पुण्य निमित्त छोड़ दी। इस धर्मिष्ठ नरेश ने उक्त भूमियों का उन रहनदारों से पुनः दान करवाया और वह शासनादेश जारी कर दिया कि जो कोई स्थानक (पुजारी आदि) दान सम्पत्ति को रहन करेगा और जो महाजन ऐसी सम्पत्ति पर ऋण देगा, वे दोनों ही समाज से बहिष्कृत समझे जाएंगे, यह कि जिस राजा के समय में भी ऐसी घटना हो वह उसका तदनुसार न्याय करेगा तथा इस शासन का उल्लंघन करनेवाला महापाप का भागी होमा। 1678 ई. में पट्टसमि और देवी रम्भा के पत्र चेन्नन ने श्रवणबेलगोल को विन्ध्यगिरि पर समुद्दीश्वर (चन्द्रप्रभ स्वामी) का मण्डप, एक कुंज (उद्यान) और दी सरोवर बनवाये थे। अगले वर्ष 1674 ई. में उन सबके संरक्षण के लिए उसने जिन्नोन हल्लिग्राम भेंट कर दिया था। देवराज ओडेयर-मैसूर नरेश महाराज देवराज ओडेयर ने 1674 ई. में जैन साधुओं को नित्य आहारदान देने के लिए खेलमोल के चारूकीर्ति पण्डिताचार्य की दामशाला को मदने नामक ग्राम का दान शिया था। इन्हीं नरेश के द्वारा प्रदत्त भूमि में, सेनसंघ के दिल्ली-कोल्हापुर-जिमकांथी-पेनुगोंडा सिंहासनाधीश लक्ष्मीसेम भट्टारक के उपदेश से पदुमायसेहि के पौत्र और दोधादणसेष्टि के पुत्र सक्करसेहि ने बेलूर में महाराज की अनुमतिपूर्वक 1680 ई. के लगभग विमलनाच-चैत्यालय बनवाया था। कृष्णराज ओडेयर...इन धर्मात्मा मैसूर नरेश ने श्रवणबेलगोल आकर गोम्मटेश्वर भगवान के भक्तिपूर्वक दर्शन किये और हर्षविभोर हो इस पुण्य तीर्थ के संरक्षण, पूजोत्सव आदि के लिए बेलगोल, अर्हनहल्लि, होसाहल्लि, जिननाथपुर, वास्तियग्राम, राचनहल्लि, उत्तनहल्लि, जिनमहल्लि, कोप्पल आदि को दान साक्षी पूर्वक दिया। लेख में दान की तिथि शक वर्ष 1621 (1699 ई.) शोभकृत संवत्सर लिखी है, किन्तु कुछ विद्वानों का कहना है कि यह शक वर्ष 1646 अर्थात् 1724 ई. होना चाहिए। कृष्णराज ने बेलगोल नगर की, जो दक्षिणकाशी भी कहलाता था, विन्ध्यांगरि पर स्थापित भगवान गोम्मटेश के चरणकमलों की भक्तिपूर्वक पूजा-वन्दना 346 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और पहिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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