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________________ १ एक महावीर प्रतिमा के 391 ई. के लेखानुसार सराप्यावंश उदयसिंह के पत्र संधपति साहु पालहंस की भार्या नायकदे की कुक्षि से उत्पन्न संघपत्ति साहु माणिक ने धर्मघोषसरि के शिष्य रलाकरमूरि द्वारा उस वर्ष में बिम्ब-प्रतिष्ठा करायी थी। संघपति उपाधि से प्रतीत होता है कि साह माणिक और उसके पिता साह पालहस ने यात्रासंघ भी चलाया था। कवि परिमल-ग्वालियर में महाराज मानसिंह तोमर के समय में चन्दन चौधरी नामक धरहिया ज्ञातीय प्रसिद्ध राज्यमान्य श्रावक थे। उनके पुत्र रामदास थे, जिनके पुत्र शास्त्रज्ञ विद्वान कर्ण थे जो आमरा में आ बसे थे। उन्हीं के पुत्र कविवर परिमल थे जिन्होंने 1594 ई. में आपस में 'श्रीपाल चरित्र' नामक हिन्दी काव्य की रचना की थी, जिसमें उन्होंने आगरानगर, धादशाह अकबर और तत्कालीन लोकदशा के सजीव वर्णन किये हैं। ब्रजभाषा के यह श्रेष्ठ कवि किसी के आश्रित नहीं थे। संघपति ,गर-मध्यप्रदेश में शादी के निकट झाग सम्राट् की ओर से चन्द्रावतवंशी राजपूत अचलाजी का पुत्र महाराज दुर्यभान शासन करता था। शिलालेखों में उसका उल्लेख 1559 से 1593 ई. पर्यन्स मिलता है। यह राजा जैनधर्म का पोषक रहा प्रतीत होता है। उसके समय में कमलापुर (कवला या कोरों, भानपुरा से 7 मील दूरस्थ) में मृलसंघ-सरस्वतीगच्छ-बलात्कारगण की आम्नाय के साहु हामा के पुत्र सिंघई खेता थे। उनके पौत्र और साहु किल्हण के ज्येष्ठ पुत्र यह संघपति दूंगर थे, जो शुभात्या, देव-गुरु-शास्त्र भक्त, चारों दानों के देने में सदा तत्पर, राज्यमान्य सेठ थे। उन्होंने 1559 ई. में कमलापुर में धर्मात्मा महाराजा दुर्गभान के सुराज्य में सुन्दर महावीर-चैत्यालय बनवाया था और अपने परिवार के समस्त स्त्री-पुरुषों सहित उनकी प्रतिष्ठा करायी थी। यह मन्दिर 'सास-बहु का मन्दिर कहलाता है। सम्भव है कि संघपति दूंगर की माता और पत्नी ने मिलकर स्वद्रश्य से इसे बनवाया हो । मानपुरा, कमलापुर आदि में उस काल के अनेक जैन भग्नावशेष मिले हैं। कमलापुर में ही दुर्गपान के उत्तराधिकारी राजा चन्द्रभान के शासनकाल में 1600 ई. में साहु पदारथ श्रीमाल के पुत्रों धर्मदास और नाहरदास ने सपरिवार विजयगच्छीय भट्टारक श्रीपूज्य पद्मसागरसूरि से आदिनाथ-बिम्ब की प्रतिष्ठा करायी थी। महामात्य नानू--आमेर के महाराज भगवानदास के पुत्र एवं उत्तराधिकारी महाराज मानसिंह सम्राट अकार के सर्वाधिक विश्वसनीय एवं प्रथम श्रेणी के प्रमुख सेनापतियों और सरदारों में से थे। मुग़ल साम्राज्य की शक्ति के वह एक सुदृढ़ स्तम्भ थे। सम्राट् ने जब 1590 ई. के लगभग उन्हें छंगाल-बिहार उड़ीसा प्रान्त का प्रान्तीय शासक (वायसराय) नियुक्त किया तो उन्होंने उस विशाल प्रदेश में समस्त विद्रोहियों का दमन करके यहाँ मुग़ल सम्राट की सत्ता पूर्णतया स्थापित कर दी और उस देश को सुशासन प्रदान किया । वस्तुत: {562 ई. में जब उनकी बुआ (राजा बिहारीपल मध्यकाल : उत्तरार्ध :: 309
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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