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________________ 2018 ER १२ उसने एक सुन्दर जिनालय बनवाया था और उसके लिए दान दिया था। कणाटक देश में नागरखण्ड प्रसिद्ध था और उसका तिलक यह कुप्पटूर था, क्योंकि वहाँ मुख्यतया जैनीजन निवास करते थे, अनेक चैत्यालय और कमलों से भरे, सरोवर थे। वह गोए महाप्रभु {गोपीपति) देशगण के सिद्धान्ताचार्य का तजस्वी प्रिय शिष्य था। जिनेन्द्र की पूजा, जिनमन्दिरों के बनवाने, सत्पात्रों को दान देने आदि पुण्य कार्य में रत रहता था। राजा देवसय प्रथम के राज्य में 1408 ई. में इस धर्मात्मा सामन्त ने संसार और कुटुम्ब का मोह छोड़कर जिनेन्द्र चरणों में मन लगाया और समाधिपूर्वक स्वर्ग प्राप्त किया। उसकी दोनों सती पत्नियों-गोपाय और पद्मायि-ने भी अपने पति का अनुसरण किया। सम्भद है कि निगलदुर्ग के शासक मोपचमुप से यह पलेनाइ-महाप्रभु गोप भिन्न हो। भव्य-मायण-कर्णाटक देशस्थ गंगवती नगरी के निवासी धर्मात्मा माणिक्य और उसकी भार्या वाचायी का सुपुत्र तथा चन्द्रकीर्ति मुनि का शिष्य सम्यक्त्व चूडामणि मध्योत्तम मायण घा, जिसने 1409 ई. में येलमोल के गंगसमुद्र की दो खण्डुग भूमि क्रय करके कई व्यक्तियों की साक्षी से गोम्मटस्वामी के अष्टविधार्चन के लिए दान दी थी। गोपगौड़-गोपीश, गोपीनाथ या गोपण महाराज वीरविजय के समय में नागरखण्ड के अन्तर्गत भारंगि का शासक था। वह बुल्लगौड और मालिगीडि का परम मातृभक्त पुत्र था। पण्डिताचार्य और श्रुतमुनि उसके दो गुरु थे जिनमें से एक उसे अनीति के मार्ग से बचाता था और दूसरा सन्मार्ग में लगाता था। उसका पिता दुरलगौड़ राययादि-पितामह अभयचन्द्र सिद्धान्ति का पुराना शिष्य था। भारंगिनगर धर्मात्मा जैनों, विष्टानों, न्यावीजनों एवं श्रीमानों से भरा था और वहाँ पाच जिनेश का एक उत्तम जिनालय था। गोप स्वयं बड़ा उदार, दानी और धर्मात्मा था। अन्ततः 1415 ई. में समाधिविधि से उसने शरीर का त्याग किया और उसका स्मारक स्थापित किया गया। उसके पिता बुल्लगौड ने भी 1406 ई. में लगभग समाधिमरण किया था। वह देवचन्द्र मुनेि का शिष्य था। उसने जिनमन्दिरों को भूमिदान किया था, सरोबर आदि बनवाये थे। गोप की बहन भागीरथी ने 1456 ई. में समाधिमरण किया था। कम्पन गौड और नागपण थोडेयर-1424 ई. में देवराज द्वितीय के समय में जब उसका पुत्र विजय-बुक्कराय प्रान्तीय शासक था और भमक्तू-अर्हत् परमेश्वर के पाद-पों का आराधक बैच-दण्डनाथ (मंगप का पुत्र और इस्गप का भाई) उसका महाप्रधान था तो बैंच के अधीन नागष्णवोडेयर नामक एक अधिकारी था जिसे होयसल राज्याधिपति कष्टा गया है, क्योंकि सम्भवतया यह पुराने होयसलगरेशों का वंशज था। उसके हाथों से पण्डितदेव के एक अन्य शिष्य नाल-महाप्रभु कम्पनगोड मे राजकुमार और महाप्रधान की सहमतिपूर्वक गोम्मटस्वामी की पूजा एवं मध्यकाल : पूर्वाध ::
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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