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लूटमार मचायी और उस प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया था तो सल्लक्षण ने अपने परिवार एवं अन्य अनेक व्यक्तियों सहित जन्मभूमि का परित्याग करके धारानगरी में परमार नरेशों के आश्रय में शरण ली। सल्लक्षण ने अपनी योग्यता से धाराधीश को प्रसन्न कर लिया और राज्य सेवा में नियुक्त हो गये। धीरे-धीरे उन्नति करके राजा अर्जुनदर्मा (1210-1218 ई.) के समय में वह मालवराज्य के सन्धिविग्रहिक मन्त्री (परराष्ट्र सचिव) हो गये। स्वयं आशाधर ने धारा में आकर पण्डित महावीर जैसे विद्वानों के निकट अपनी शिक्षा पूरी की और अपने अध्यवसाय से farar-विषय-पद प्रकाण्ड विद्वान् बन गये। उनकी पत्नी सरस्वती उनकी यथार्थ अनुगामिनी थी। राजधानी धारा के कोलाहल से बचने के लिए और शान्तिपूर्ण वातावरण में साहित्य साधना करने के उद्देश्य से आशाधर ने निकटवर्ती नलकच्छपुर ( नालछा ) को अपना आवास बनाया, वहाँ अपना एक विशाल विद्यापीठ स्थापित किया और एकचित्त हो ग्रन्थ-रचना में जुट गये। उन्होंने लगभग 1225 ई. से 1245 ई. के बीच विविध विषयक साधिक चालीस ग्रन्थ रचे । नय- विश्व-नक्षु, प्रज्ञापुंज, कविराज, कवि कालिदास, सरस्वतीपुत्र, आचार्य- कल्प, सूरिं आदि अनेक सार्थक विरुद इन्हें तत्कालीन जैन और अजैन विद्वानों से प्राप्त हुए थे। पण्डितजी के अनेक शिष्य और भक्त थे जिनमें गृहस्थ श्रावक ही नहीं, त्यागी और मुनि भी थे। इनमें उदयसेन मुनि, वादीन्द्र विशालकीर्ति, जिन्हें पण्डितजी ने न्याय - शास्त्र का अध्ययन कराया था और उन्हें अनेक प्रतिद्वन्द्वियों पर वादविजय करने में समर्थ बनाया था, शासन-चतुर्विंशतिका के कर्ता यतिपति मदनकीर्ति, पं. देवचन्द्र जिन्हें पण्डितजी ने व्याकरणशास्त्र में पारंगत किया था, भट्टारक विनयचन्द्र जिन्हें पण्डितजी ने धर्म-शास्त्र का अध्ययन कराया था और जिनकी प्रेरणा पर उन्होंने स्वयं इष्टोपदेश - टीका की रचना की थी, भव्य कण्ठाभरण - पाँचका, पुरुदेवचम्पू और मुनिसुव्रत-काव्य के रचयिता कवि अहदास जिन्हें पण्डितजी की उक्तियों, सूक्तियों और सद्ग्रन्थों से बोध एवं सन्मार्ग प्राप्त हुआ था, और पं. जाजाक जिनके नित्य स्वाध्याय के लिए पण्डितजी ने त्रिषष्टि-स्मृतिशास्त्र की रचना की थी, इत्यादि प्रमुख हैं। राज्य के प्रधानामात्य विल्हreate और बाल-सरस्वती महाकवि मदनोपाध्याय जैसे अजैन प्रकाण्ड विद्वानों ने आशाधरजी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। खण्डेलवाल श्रावक अल्हण के प्रपौत्र, पापा के पौत्र, पद्मसिंह के भतीजे, बहुदेव के पुत्र और उदयदेव एवं स्तम्भदेव के ज्येष्ठ भ्राता धर्मात्मा हरदेव, पौरपदान्वय (परवार या पोरवाड़) के समुद्धर श्रेष्ठ के पुत्र महीचन्द्र साहु, खण्डेलवाल श्रावक केल्हण श्रावक धनचन्द्र तथा खण्डेलवाल श्रावक महण और कमलश्री के पुत्र धीनाक उनके गृहस्थ भक्तों में प्रमुख थे, जिनकी प्रेरणा पर आशाधरजी ने विभिन्न ग्रन्थ रथे थे। स्वयं आशाधर के पुत्र छाड़ अपने पितामह मन्त्रीवर सल्लक्षण के प्रशिक्षण में रहकर राजा अर्जुनवर्मा के प्रिय पात्र थे ।
उत्तर भारत 231