________________
SAML
18.18
13वीं शती के प्रारम्भ में दिल्ली के प्रथम सुल्तान गुलामवंशी कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहाँ कुम्चतुल-इस्लाम मस्जिद बनवायी थी। इस मसजिद के भग्नावशेष कुतुबमीनार के निकट विद्यमान हैं और उनमें आज भी उक्त जिनन्दिर के अंश स्पष्ट लक्षित हैं।
मदनपाल तोमर-अनंगपाल चतुर्थ का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, इस वंश का दिल्ली का अन्तिम नरेश था. यह श्वेताम्बराचार्य युगप्रधान जिनदत्तसूरि के पट्टधर मणिधारी जिमचन्द्रसूरि का परम भक्त था। यह बड़े प्रभानक आचार्य थे और अल्प दय में ही दिल्ली में उनका स्वर्गवास 116 ई. में हुआ था। इसके छोड़े समय उपरान्त उसी वर्ष उनके भक्त इस राजा का भी देहान्त हो गया। सूरिजी के समाधिमरण के स्थान पर श्रावकों ने बड़े समारोह के साथ उनका अन्त्येष्टि संस्कार करके एक स्तूप का निर्माण कराया था। यह स्थान अब भी 'बड़े दादाजी के नाम से प्रसिद्ध है। सूरिजी ने दिल्ली में एक पोसहसाला भी स्थापित की थी। दिल्ली में कुलचन्द्र, लोहद, पाल्हण आदि उनके अनेक भक्त श्रावक थे। कुलचन्द्र तो अत्यन्त निधन था और उनकी कृपा से करोड़पति हो गया था, वह उनका अनन्य भक्त था। मदनपाल तोमर की स्थिति इतिहास में कुछ सन्दिग्ध है। अनंगपाल के उपरान्त पृथ्वीराज चौहान का ही उल्लेख मिलता है। सम्भव है कि सौहानों का दिल्ली राज्य पर अधिकार होने और पृथ्वीराज के यहाँ आकर रहने लगने के मध्य, तीन चार वर्ष, यह मदनपाल तोमर स्थानापन्न शासक रहा हो।
धारा के परमार राजे
उपेन्द्र अपरनाम कृष्णराज या गजराज ने 9वीं शती के उत्तरार्ध में मालवा देश को धारानगरी में परमार राज्य की स्थापना की थी। उसका उत्तराधिकारी सीयक द्वितीय उपनाम हर्ष प्रतापी नरेश और स्वतन्त्र राज्य का स्वामी था। अपने पोषित पुत्र मुंज को राज्य देकर 974 ई. के लगभग सीयक परमार ने एक जैनाचार्य से मुनि दीक्षा लेकर शेष जीवन एक जैन साधु के रूप में व्यतीत किया था। वावपतिसज्ज मुंज अपरमाम उत्पलराज बना वीर, पराक्रमी, कवि और विद्याप्रेमी था। प्रबन्धचिन्तामणि आदि जैन ग्रन्थों में मुंज के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ मिलती हैं। अनेक संस्कृत कवियों का यह प्रश्रयदाता था, जिनमें जैन कवि धनपाल भी था। जैनाचार्य महसेन और अमितगति का वह बहुत सम्मान करता था। उन्होंने उसके आश्रम में कई ग्रन्थ भी रचे थे। मुंज जैनी था या नहीं, किन्तु जैनधर्म का पोषक अयश्य था। सन् 495 ई, के लगभग उसकी मृत्यु हुई। उसका उत्तराधिकारी उसका अनुज सिन्धुल या सिन्धुराज (996-1009 ई.), जिसके विरुद कुमारनारायण और नय-साहसांक थे, 'प्रधुम्नचरित' के कर्ता मुनि महसेन का गुरुवत् आदर करता था। उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी भोजदेव परमार (1010-1053 ई.) प्राचीन वीर विक्रमादित्य की ही भौति भारतीय लोक-कथाओं का एक प्रसिद्ध नायक है। वह वीर, प्रतापी और
उत्तर भारत :: 229