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________________ था मरियाने प्रथम के पुत्र दानाथ डाकरस की पत्नी येचिक्क से प्रस्तुत मरियाने द्वितीय का जन्म हुआ था। उसका सहोदर माकणचाप था और दूसरा भाई भरत (भरतमय्य, भरतेश्वर) था जो उसकी विमाता दुग्गब्बे से उत्पन्न हुआ था। मरियाने और भरत भ्रातृय ने विष्णुवर्धन होयसल के समय में साथ-साथ अभूतपूर्व उन्नत्ति की। इन वीरों की युगल जोड़ी अपने बीर्य, शौर्य, पराक्रम, राजनीति-कुशलता और धर्मनिष्ठा के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध हो गयी। महाराज ने इन दोनों भाइयों को संयुक्त रूप से सर्वाधिकारी, माणिक-मण्डारी तथा प्राणाधिकारी पद प्रदान किये थे। मरियाने दण्डनायक को अपना 'पट्टदाने' (राज्य-गजेन्द्र) समझकर राजा ने अपना सेनापति इनाया। अपनी धर्मनिष्ठा के लिए इन दोनों शूरवीरों को निरवध-लक्ष्मी-रत्नकुण्डल, नित्य-जिनाभिषेक-निरत, जिनपूजामहोत्साहजनितप्रमोद, चतुर्विध-दान-विनोद आदि विरुद प्राप्त हुए थे। मरियाने गंगराज के जामाता थे और मरियाने एवं भरत की भगिनी मंगराज के पुत्र बोपदेव दण्डनायक के साथ विवाही थी। सिन्दिगेरी की ब्रह्मेश्वर-बसदि के दालान में स्थित स्तम्भ पर उत्कीर्ण 1138 ई. के शिलालेख में भरत दण्डनायक की अत्यन्त साहित्यिक कलापूर्ण प्रशस्ति प्राप्त होती है, जिससे पता चलता है कि उसका धन जिनमन्दिरों के लिए था, उसकी दया सभी प्राणियों के लिए थीं, उसका चित्त जिनराज की पूजा-अर्चा में निरत था, उसका औदार्य सम्जनवर्ग के लिए था और दान सन्मुनीन्द्रों के हितार्थ था। उसने श्रवणबेलगोल में अस्सी नवीन सदियाँ निर्माण करायी थी और गंगाडि की दो सी पुरानी बसदियों का जीर्णोद्धार कराया था। ये दोनों भाई देशीगण-पुस्तकगच्छ के आचार्य माधनन्दि के शिष्य गण्डविमुक्तवती के गृहस्व-शिष्य थे। ये दोनों विष्णुवर्धन के पुत्र एवं उत्तराधिकारी नरसिंह प्रथम के समय में भी पदारद थे और उक्त नरेश से उन्होंने 500 होन्न देकर सिन्दिगेरी आदि तीन ग्रामों का प्रभुत्व एक बार फिर प्राप्त किया था। उनका सम्पूर्ण परिवार परम जिमभक्त था। भरतेश्वर ने श्रवणबेलगोल में तीर्थंकर ऋषभदेव के प्रतापी पुत्रों भरत और बाहुबलि की प्रतिमाएँ भी स्थापित की थी। उनके चहुँओर एक परकोटा बनवाया था, एक विशाल गर्भगृह, रंगशाला और पक्की सीढ़ियों बनवायी थीं । मरत की धर्मात्मा पुत्री शान्तलदेवी, जो बूधिराज के साथ विवाही थी, के 1160 ई. के शिलालेख में भरत के उपर्युक्त धर्मकार्यों का विवरण दिया गया है। भरत की धर्मपत्नी हरियले के गुरु मुनि माघमन्दि थे। भरत के पुत्र विहिदेव और मारियाने व्रतीय थे। मरियाने के पुत्र परत द्वितीय और बाहुबलि भी बड़े बीर सेनानी और धर्भाला थे। बल्लाल द्वितीय के शासनकाल में उन्होंने प्रभूत प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। मरियाने द्वितीय की पत्नी जक्कापञ्चे से बिम्मलदेवी (बम्मल) नाम की पुत्री उत्पन्न हुई थी जो नरसिंह प्रथम के महाप्रधान जैन धीर पारिसरण के साथ विवाही थी। मरियाने द्वितीय के पुत्र बोप्प और हेग्मडदेय थे, उनका ही अपरनाम भरत और बाहुबलि रही प्रतीत होता है। होयसल राजवंश :: 155
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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