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________________ थी। अन्त में जब 135 ई. में इस कर्मवीर और धर्मवीर एचिराज दण्डनायक ने समाधिमरणापूर्वक शरीर का त्याग किया और उसकी स्मति में बोपदेव ने जो स्मारक (निषधा) बनवाया, दानादिक दिये, उनमें एचिराज की माता बागायचे और पत्नी एचिकब्बे का भी योग था। सामन्त-होयसल नरेशों का एक धर्मात्मा सामन्त था और नामले माता का सुपुत्र तथा शुभचन्द्र-सिद्धान्तिदेव का गृहस्थ-शिष्य था। वह रूपवान्, गुणवान्, शूरवीर, तेजस्वी एवं धर्मिष्ठ राजपुरुष था। उसकी दो बहनें थीं, जिनमें एक देमति (देवमति) थी जो चामुण्ड नामक प्रतिष्ठित एवं राजमान्य श्रेष्ठि के साथ विवाही थी, दूसरी लक्कले या लक्ष्मीमति सुप्रसिद्ध गंगराज की धर्मात्मा पत्नी थी। ये तीनों भाई-बहन उक्त शुभचन्द्रदेव के गृहस्थ-शिष्य थे। धर्मात्मा देवमती ने 1120 ई. में और धर्मपरायण लक्ष्मीमती ने 1121 ई. में समाधिमरणपूर्वक देहत्याम किया था। उनका धर्मात्मा भाई बूधण उनके पहले ही, 1115 ई. में समाधिमरण द्वारा स्वर्गस्थ हो चुका था। यूधण की धर्मात्मा पत्नी चामले (चामियक्क) माचिराज-पेगड़े और मरुदेवी की पुत्री तथा न्यकीर्ति की गृहस्थ-शिष्या थी। गुरु के स्वर्गस्थ होने पर 1128 ई. में उसने उनकी स्मृति में तगडूर में जिनालय बनवाया था, जिसके लिए उसने, धर्मात्मा वीर सामन: Arr. ने सो मारने की करणी को दान दिया था। दण्डनायक बलदेवपण--विष्णुबंधन होयसल का एक प्रसिद्ध मन्त्री और वीर सेनानी था। यह राला आदित्य अपरनाम अरसादित्य की भार्या आचाम्बिके से उत्पन्न उनका तृतीय पुत्र था। उसके ज्येष्ठ भ्राता पम्पराय और हरिदेव तथा भतीजा माधिराज भी महाराज के वीर सेनानी थे और परम जिनभक्त थे। अभिलेखों में उसका मन्त्री यूवाग्ग्रणी, गुणी, सकलसचिवनाथ एवं जिनपादांधि-सेवक-जैसे विशेषणों के साथ स्मरण किया गया है। वह सजा के शत्रुओं का दमन करनेवाला, महासाहसी, परदाराविरत, सरस्वती का कण्टाभरग, यशस्वी, रूपवान और जिनभक्त था। वह और उसके भाई, तीनों कपाटक-कुल के आभूषण कहलाते थे। दण्डनाथ पुणिसमय-पुणस, पुणिस था पुणितपय्य महाराज विशवधन होयसल का राजदण्डाधीश एवं सन्धिविग्रहिक-मन्त्री था और महासेनापति गंगराज के प्रमुख धीर साथियों में परिगणित था। उसके पूर्वज भी राज्य के अमात्य रहते आये थे। पितामह सकलशासन-वाचक चक्रवर्ती पुणिसराज दण्वाधीश थे, जिनकी धर्मपत्नी का नाम पोचले था। इस दम्पती के तीन पुत्र थे...चावण (चामराज), कोरप और नागदेव। इनमें से थामराज धगूपति की प्रथम पत्नी अरसिकव्वे से प्रस्तुत मन्त्रीराज पुणिसमय दण्डनाथ का जन्म हुआ था। वह बड़ा वीर योद्धा और कुशल सेनानी एवं अनेक युद्धों का विजेता था। नीलगिरि के युद्धों में चोल-नरेश के कई सामन्तों को पराजित करके उसने अपने स्वामी को दक्षिण दिशा की कुंजी ही प्रदान होयसल सनवेश :: 168
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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