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________________ बड़ा शूरवीर और धर्मिष्ठ था। अपने स्वनामधन्य जनक जननी का आदर्श उसका सतत प्रेरक था। शिलालेखों में उसे 'बुध-बन्धु', 'सतां बन्धु'-जैसे विरुदों के साथ याद किया गया है। आचार्य शुभचन्द्र, प्रभाचन्द्र और नयकीर्ति सिद्धान्तचक्रवर्ती उसके गुरु थे। प्रसिद्ध दण्डनायक भरत और मरियाने उसके साले थे। सन् 1133 ई. में बोप्प ने अपने प्रिय पिता 'द्रोहपर' गंगराज की पुण्यस्मृति में द्रोहवरह-जिनालय नाम का एक मनोहर जिनभवन राजधानी द्वारसमुद्र के केन्द्रस्थल में बनवाया था। इसी जिनालय के जिनाभिषेक का गन्धोदक मस्तक पर चढ़ाकर राजा ने उसका नाम विजय पार्श्व- जिनालय रखा था और उसके हेतु दान आदि दिये थे। तदनन्तर वीर दण्डनायक बोप्प ने राज्य के शत्रुओं पर आक्रमण किया और उनकी प्रबल सेना को खदेड़कर कोंगों को बुरी तरह पराजित किया था। सन् 1195 ई. में बोप्य ने अपने भाई (ताऊ के पुत्र ) दण्डनायक एचिराज के समाधिमरण कर लेने पर उसकी निषद्या (स्मारक) निर्माण करायी और उसके द्वारा निर्मार्पित जिनमन्दिरों के लिए गंगसमुद्र की कुछ भूमि शुभचन्द्र के शिष्य माधवचन्द्रदेव को प्रदान की। उसने श्रवणबेलगोल में 1198 ई. में बोप्पणचैत्यालय अपरनाम त्रैलोक्यरंजन-जिनालय नि निर्माण करा उसमें प्रतिष्ठापित नेमिनाथ प्रतिमा को उपर्युक्त बन्धु एचण (एचिराज) की स्मृति संरक्षणार्थ प्रतिष्ठित कराया था । कदम्बहल्लि को शान्तीश्वर बसदि भी इस बोप्प austion ने ही बनवायी थी। यह भारी विद्वान् और विधारसिक भी था। जक्कणचे दण्डनायककीर्ति-गंगराज के ज्येष्ठ भ्राता बम्मदेव चमूपति की भार्या, बोप्प की ताई, एचिराज की माता या विमाता और शुभचन्द्रदेव की गृहस्थ-शिष्या बड़ी धर्मात्मा महिला थी। उसने मोक्षतिलक नामक व्रत किया था, पाषाण में नयणदेव की मूर्ति खुदवायी थी, श्रवणबेलगोल में एक सरोवर बनवाया था और जिनप्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी। उस स्थान की चामुण्डराय बसदि के 1123 ई. के एक स्तम्भ लेख में इस महिलारत्न के गुणों, जिनभक्ति, गुरुभक्ति आदि की प्रशंसा है। लेख में गुरु शुभचन्द्र के स्वर्गारोहण का तथा जक्कणब्बे द्वारा उनकी निषद्या बनवाने का उल्लेख है। 1 दण्डनायक एचिराज- गंगराज के ज्येष्ठ भ्राता बम्मदेव चमूपति का वीर पुत्र था। उसकी माता बामगब्धे मुनि भानुकीर्ति की गृहस्य शिष्या थी। उसी का अपरनाम सम्भवतया जक्कब्बे था, अथवा यह बम्मदेव की दूसरी पत्नी थी। जक्कणन्बे भी बड़ो धर्मात्मा थी। एक शिलालेख में स्वयं वम्मदेव को यशस्वी, धनपति, विद्यापति और जिनपति-पदाब्जभृंग चमूपति (सेनापति) कहा है। उनका सुपुत्र यह एच चमूपति भी बड़ा वोर और धर्मनिष्ठ था। अपने चाचा सुप्रसिद्ध गंगराज और बन्धु बोप्पदण्डेश के लौकिक एवं धार्मिक कार्यों में उनका परम सहायक था। कोप्पणा और श्रवणबेलगोल जैसे तीर्थों पर उसने अनेक जिनालय बनवाये थे। उसकी भार्या एचिकवे भी रूप-गुण-निधान, धर्मात्मा महिला थी और शुभचन्द्रदेव की गृहस्थ-शिष्या 162 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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