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को कायर बना दिया और इसी कारण मुसलमान आदि विदेशी आक्रमणकारियों के सम्मुख भारत की पतन हुआओ, यो प्रान्त एवं अवधार्थ है। भारत के पतन का कारण जैनधर्म कदापि नहीं हुआ। उत्तरवर्ती चोल-नरेश ___षीं शती ई. में विजयालम चोल ने तंचाजर (तंजौर) को राजधानी बनाकर अपने वंश की स्थापना की और चोल राज्य का पुनरुत्थान किया। उसके पंश में राज-राजा केसरिवर्मन चाल (985-1016 ई.) इस वंश का सर्वमहान नरेश था। वह बड़ा प्रतमी और भारी विजेता था । लंका का भी एक बड़ा भाग जीतकर उसने अपने राज्य में मिला लिया था और समुद्र पार के कई अन्य द्वीपों पर भी अधिकार कर लिया था। जैन महाकवि धनपाल के तिलकर्मजरी काव्य में समरकेतु को समुद्री यात्रा का वर्णन अनेक विद्वानों के मतानुसार राजराजा चोल के ही सुदूरपूर्व के किसी द्वीप या देश पर किये गये समुद्री आक्रमण की तैयारी का सजीव वर्णन है। क्या आश्चर्य है जो परमारों के मालवा का यह कवि राजराजा से भी सम्मानित हुआ हो और उक्त अभियान के समय चोल राजधानी में उपस्थित हो। यह नरेश सामान्यतया शैवधर्म का अनुयायी था, किन्तु साथ ही बहुत उदार और धर्मसहिष्णु था। उसके राज्य में जैनों पर कोई अत्याचार नहीं हुआ, वरन् विद्वानों का तो वह मत है कि उसके समय में जैनों को शैयों के समान ही राज्याश्रय प्राप्त था और उसके साम्राज्य में जैनधर्म उन्नत अवस्था में था। जैनतीध पंचपाण्डयमलै के 992 ई. के तमिल शिलालेख के अनुसार इस नरेश के एक बड़े उपराजा लाटराज वीर घोल ने अपनी रानी लाटमहादेवी को प्रार्थना पर तिरुपानमलै के जिनदेवता को एक ग्राम की आय समर्पित की थी। इसी नरेश के 21 वर्ष में, 1005 ई. में, गुणवीर मुनि ने आपने गुरु गणिशेखर उपाध्याय की स्मृति में एक नहर बनवायी थी। उसका पुत्र राजेन्द्र चोल (1016-42 ई.) सुयोग्य पिता का सुयोग्य पुत्र था, किन्तु पीछे से जैनधर्म का विद्वेषी हो गया कहा जाता है, तथापि चिक्कहनसोगे के 1025 ई. के लगभम के एक शिलालेख के अनुसार यहाँ के देशीमण-पुस्तकगच्छ के एक जैनमन्दिर का नाम राजेन्द्र चोल-जिनालय था जो इस राजा द्वारा बनवाया गया था और उसी के समय में 1025 ई. में परिपपर्यत तिरुमलै के शिखर पर स्थित कुन्दश्व-जिनालय को दान दिया गया था जो कुन्दव नाम की राजमहिला द्वारा निर्मापित था । वह राजराजा चोल की पुत्री, राजेन्द्र चोल की बहन और विमलादित्य चालुक्य की रानी थी। तत्पश्चात् राजाधिराज और अधिराजेन्द्र क्रमशः गद्दी पर बैठे। अन्तिम नरेश को 1074 ई. में उसके भानजे कोलुत्तुंग ने, जो इंगि के चालुक्य वैश में उत्पन्न हुआ , मारकर चोलों का सिंहासन हस्तगत कर लिया और चोल एवं चालुक्य दोनों राज्यों को सम्मिलित करके उन पर अपना एकच्छत्र शासन स्थापित कर लिया।
राष्ट्रकूट-धील-उत्तरवर्ती चालुक्य-कलवरी :: 24