SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ प्रमाणमीमांसा - गमकत्वोपपत्तिः । ननु पक्षधर्मताऽभावे श्वेतः प्रासादः काकस्य कार्ण्यादित्यादयोऽपि हेतवः प्रसज्येरन्; नैवम्, अविनाभावबलेनैवापक्षधर्माणामपि गमकत्वाभ्युपगमात् । न चेह सोऽस्ति । ततोऽविनाभाव एव हेतोः प्रधानं लक्षणमभ्युपगन्तव्यम्, सति तस्मि - सत्यपि लक्षण्ये हेतोर्गमकत्वदर्शनात् । न तु त्रैरूप्यं हेतुलक्षणम् अव्यापकत्वात् । तथा च सर्वं क्षणिकं सत्त्वादित्यत्र मूर्द्धाभिषिक्ते साधने सौगतैः सपक्षेऽसतोऽपि हेतोः सत्त्वस्य गमकत्वमिष्यत एव तदुक्तम् "अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् ? | नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् ? ॥” इति । ३४- एतेन पञ्चलक्षणकत्वमपि नैयायिकोक्तं प्रत्युक्तम्, तस्याप्यविनाभावप्रपञ्चत्वात् । तथाहि त्रैरूप्यं पूर्वोक्तम् अबाधितविषयत्वम्, असत्प्रतिपक्षत्वं चेति पञ्चरूपाणि । तत्र प्रत्यक्षागमबाधित कर्म निर्देशानन्तरप्रयुक्तत्वं बाधितविषयत्वं यथाऽनुष्णस्तेजोवयवी कृतकत्वात् घटवत् । ब्राह्मणेन सुरा पेया (द्रव) द्रव्यत्वात् क्षीरवत् इति । शंका-पक्षधर्मता के अभाव में अर्थात् हेतु के पक्ष में न रहने पर भी यदि वह गमक हो जाय तो - 'यह प्रासाद धवल है, क्योंकि का काला है।' इस प्रकार के हेतु भी गमक हो जाएँगे । ( यहाँ का का कालापन हेतु है और यह हेतु पक्ष- प्रासाद में नहीं है । अतः हेत गमक नहीं होता । यदि पक्षधर्मता के अभाव में भी हेतु को गमक माना जाएगा तो यह हेतु भी गमक हो जाएगा ।) समाधान पक्षधर्मता न होने पर भी अविनाभाव के होने पर ही हेतु गमक होता है। इस अनुमान में अविनाभाव नहीं है, इस कारण यह गमक नहीं है अतएव अविनाभाव को ही हेतु का प्रधान लक्षण स्वीकार करना चाहिए । अगर अविनाभाव होगा तो रूप्य के न होने पर भी हेतु गमक हो जाएगा। इस के अतिरिक्त हेतु का त्रैरूप्य लक्षण अव्यापक होने के कारण संगत नहीं हो सकता । बौद्धों का प्रधान अनुमान है- 'सर्व पदार्थ क्षणिक हैं, क्योंकि सत् अर्थात् अर्थक्रियाकारी हैं। । 'इस अनुमान में सपक्षसत्त्व नहीं है ( क्योंकि सर्व पदार्थों को पक्ष बना लिया गया है) फिर भी वे हेतु को गमक मानते हैं । कहा भी है 'जहाँ अन्यथानुपपत्ति है, वहाँ त्रिरूपता का प्रयोजन ही क्या है ? ( वह व्यर्थ है क्योंकि अन्यथानुपपत्ति के ही बल से हेतु गमक हो जाएगा । और जहाँ अन्यथानुपपत्ति नहीं है, वहाँ भी त्रिरूपता से क्या लाभ? (त्रिरूपता के होने पर भी अन्यथानुपपत्ति के अभाव में हेतु गमक नहीं हो सकता । ) ३४- नैयायिक हेतु के पाँच लक्षण मानते हैं-पूर्वोक्त तीन और अबाधितविषयत्व तथा असप्रतिपक्षत्व | यह पाँच लक्षण हैं । बौद्धमत के निराकरण से इसका भी निराकरण हो जाताहै । प्रत्यक्ष या आगम प्रमाण से बाधित साध्य के अनन्तर हेतु का प्रयोग करना बाधित विषयत्व है । जैसे- अवयवी रूप अग्नि उष्ण नहीं है, क्योंकि वह कृतक है, कृतक उष्ण नहीं होता, जैसे घ। (यहाँ अग्नि की अनुष्णता साध्य स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष से बाधित है। अतएव कृतकत्व हेतु प्रत्यक्षबाधित विषय कहलाया ।) ब्राह्मण को सुरा पेय है। क्योंकि वह द्रव (तरल) है, जैसे क्षीर ।
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy