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________________ ७७ प्रमाणमीमांसा ८-सा च प्रमाणम् अविसंवादित्वात् स्वयं निहितप्रत्युन्मार्गणादिव्यवहाराणां दर्शनात् । नन्वनुभूयमानस्य विषयस्याभावान्निरालम्बना स्मृतिः कथं प्रमाणम् ? । नैवम्,अनुभूतेनार्येन सालम्बनत्वोपपत्तेः, अन्यथा प्रत्यक्षस्याप्यनुभूतार्थविषयत्वादप्रामाण्यं प्रसज्येत । स्वविषयावभासनं स्मतेरप्यविशिष्टम् । विनष्टो विषयः कथं स्मृतेर्जनकः?, तथाचार्थाजन्यत्वान्न प्रामाप्यमस्या इति चेत् तत् किं प्रमाणान्तरेऽप्यर्थजन्यत्वमविसंवादहेतुरिति विप्रलब्धोऽसि?। मैवं मुहः, यथैव हि प्रदीपः स्वसामग्रीबललब्धजन्मा घटादिभिरजनितोऽपि तान् प्रकाशयति तथैवावरणक्षयोपशमसव्यपेक्षेन्द्रियानिन्द्रियबलब्धजन्म संवेदनं विषयमवभासयति । "नाननुकृतान्वयव्यतिरेकं कारणम् नाकारणं विषयः" इति तु प्रलापमात्रम्, योगिज्ञानस्यातीतानागतार्थगोचरस्य तदजन्यस्यापि प्रामाण्यं प्रति विप्रतिपत्तेरभावात् । किंच, स्मृतेरप्रामाण्येऽनुमानाय दत्तो ८-स्मृति प्रमाण है, क्योंकि वह अविसंवादक है अर्थात् सफल क्रियाजनक है। उसके अविसंवादक होने का कारण यह है कि स्वयं रक्खी हुई वस्तु की स्मृति के आधार पर तलाश करने आदि व्यवहारों में कोई गड़बड़ नहीं होती। शंका-स्मृति का विषय अनुभूयमान---वर्तमान में अनुभव किया जाता हुआ-नहीं होता (पूर्वानुभूत पदार्थ को ही स्मृति जानती है जिसकी कोई सत्ता नहीं रहती) अतएव वह निविषय होने के कारण कैसे प्रमाण हो सकती है ? समाधान--ऐसा न कहिए । स्मृति का विषय अनुभूत पदार्थ हे ता है, अतएव वह निविषय नहीं--सविषय ही है। अनुभूत विषय होने पर भी यदि स्मृति को निविषय कह कर अप्रमाण मानते हो तो प्रत्यक्ष भी जब अनुभूत पदार्थ को विषय करता है तब अप्रमाण हो जाना चाहिए । कदाचित् कहो कि अपने विषय को जानने के कारण प्रत्यक्ष तो प्रमाण ही है, तो यही बात स्मृति के विषय में भी समझ लेनी चाहिए। __ शंका-जो विषय सर्वथा नष्ट हो चुका है, वह स्मृति का जनक कैसे हो सकता है ?अतएव अर्थजन्य न होने के कारण स्मृति प्रमाण नहीं है । समाधान-क्या इस धोखे में हो कि पदार्थ से उत्पन्न होने के कारण ज्ञान अविसंवादक (और प्रमाण) होता है ! आपको इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए । दीपक तेल, बत्ती आदि अपने कारणों से उत्पन्न होता है, घट आदि से उत्पन्न नहीं होता, फिर भी घट आदि को प्रकाशित करता है। इसी प्रकार आवरणक्षयोपशम-- सापेक्ष इन्द्रिय और मन की सहायता से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान (अर्थजनित न होने पर भी) पदार्थ को प्रकाशित करता है। ___'अन्वय और व्यतिरेक के विना कार्यकारणभाव नहीं होता और जो ज्ञान का कारण नहीं होता वह ज्ञान का विषय भी नहीं होता' बौद्धों का यह कथन प्रलापमात्र है । योगियों का ज्ञान भतकालीन (विनष्ट) और भविष्यत्कालीन (अनुत्पन्न) पदार्थों को जानता है, यद्यपि उनसे उत्पन्न नहीं होता; फिर भी उसको प्रमाणता के संबंध में कोई विवाद नहीं है । स्मृति को यदि प्रमाण नहीं माना जाएगा तो अनुमान को प्रमाणता का भी परित्याग करना पडेगा। व्याप्ति
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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