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प्रमाणमीमांसा
"यत्र तत्र समये यथा तथा योऽसि सोऽस्यभिधया यया तया ।
airchषकषः स चेद्भवानेक एव भगवन्नमोऽस्तु ते ॥”[ अयोग-३१ ]
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इति । केवलं ब्रह्मादिदेवताविषयाणां श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासकथानां वैतथ्यमास -- ज्येत । तदेवं साधकेभ्यः प्रमाणेभ्योऽतीन्द्रियज्ञानसिद्धिरुक्ता ॥ १६ ॥
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बाधकाभावाच्च ॥१७॥
५९ -- सुनिश्चितासम्भवद्बाधकत्वात् सुखादिवत् तत्सिद्धिः इति सम्बध्यते । तथाहि केवलज्ञानबाधकं भवत् प्रत्यक्षं वा भवेत् प्रमाणान्तरं वा ? । न तावत् प्रत्यक्षम् ; तस्य विधावेवाधिकारात्
" सम्बद्धं वर्तमानं च गृह्यते चक्षुरादिना ।" [ श्लोकवा० सू० ४. श्लो० ८४] इति स्वयमेव भाषणात् ।
६०--अथ न प्रवर्तमानं प्रत्यक्षं तद्वाधकं किन्तु निवर्तमानम् तत् ; तह (द्धि) यदि नियत देशकालविषयत्वेन बाधकं तर्हि सम्प्रतिपद्यामहे । अथ सकलदेशकालविषयत्वेन; तहि न तत् सकलदेशकालपुरुषपरिषत्साक्षात्कारमन्तरेण सम्भवतीति सिद्धं 'किसी भी मत - परम्परा में, किसी भी नाम से, किसी भी स्वरूप में कोई भी क्यों न हो, यदि वह दोष कालुष्य से सर्वथा हीन हो गया है तो वह आप ही हो । भगवन् ! आपको नमस्कार हो ।'
किन्तु ब्रह्मा आदि को वीतराग और सर्वज्ञ मानने से श्रुति, स्मृति, पुराण और इतिहास में लिखित उनके संबंध की कथाएँ मिथ्या हो जाएँगी। इस प्रकार साधक प्रमाणों द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञान को सिद्धि का निरूपण किया गया ॥ १६ ॥
अर्थ-
-- बाधक प्रमाण के अभाव से भी अतीन्द्रिय ज्ञान को सिद्धि होती है ॥१७॥
५९ - जैसे सुख के अस्तित्व में बाधक प्रमाण का अभाव भलीभांति निश्चित है, उसी प्रकार अतीन्द्रिय ज्ञान के विषय में भी किसी बाधक प्रमाण का न होना निश्चित है । केवलज्ञान का बाधक कोई प्रमाण हो तो वह प्रत्यक्ष है या अन्य कोई प्रमाण ? प्रत्यक्ष बाधक हो नहीं सकता, क्योंकि आपके मत से उसका अधिकार विधान करना ही है । निषेध को वह जान नहीं सकता । आपने ही कहा है-चक्षु आदि इन्द्रियाँ अपने से सम्बद्ध और वर्तमान वस्तु को ही ग्रहण करती है। ६० - शंका - प्रवर्त्तमान प्रत्यक्ष बाधक नहीं है किन्तु निवर्तमान प्रत्यक्ष बाधक है । अर्थात् केवलज्ञानी प्रत्यक्ष से प्रतीत नहीं होता, इसी से उसे बाधक मानते हैं ।
-समाधान- यदि अमुक देश और अमुक काल में ही प्रत्यक्ष केवलज्ञान का बाधक है तो हमें भी यह स्वीकार है- इस देश काल में हम भी उसका अभाव मानते हैं । यदि समस्त देशों और कालों में केवलज्ञान या प्रत्यक्ष से अभाव सिद्ध करना चाहते हो तो समस्त देश काल और पुरुष समूह का साक्षात्कार किये विना ऐसा करना संभव नहीं है । अगर आप सम्पूर्ण देश पुरुष समूह का साक्षात्कार करने का दावा करते हों तो हमारा अभीष्ट सिद्ध हो
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