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४७-- अथ मुख्यसांव्यवहारिकभेदेन द्वैविध्यं प्रत्यक्षस्य हृदि निधाय मुख्यस्य
लक्षणमाह-"
तत् सर्वथावरणविलये चेतनस्य स्वरूपाविर्भावो मुख्यं केवलम् ||१५||
४८- 'तत्' इति प्रत्यक्षपरामर्शार्थम्, अन्यथानन्तरमेव वैशद्यमभिसम्बध्येत । -दीर्घकालनिरन्तरसत्कारासेवितरत्नत्रयप्रकर्षपर्यन्ते एकत्ववितर्काविचारध्यानबलेन निःशेषतया ज्ञानावरणादीनां घातिकर्मणां प्रक्षये सति चेतनास्वभावस्यात्मनः प्रकाशस्वभावस्येति यावत्, स्वरूपस्य प्रकाशस्वभावस्य सत एवावरणापगमेन 'आविर्भाव: ' आविर्भूतं स्वरूपं मुखमिव शरीरस्य सर्वज्ञानानां प्रधानं 'मुख्यम् ' प्रत्यक्षम् । तच्चेन्द्रियादिसाहायकविरहात् सकलविषयत्वादसाधारणत्वाच्च 'केवलम्' इत्यागमे प्रसिद्धम् ।
प्रमाणमीमांसा
४९-प्रकाशस्वभावता कथमात्मनः सिद्धेति चेत्; एते ब्रूमः - आत्मा प्रकाशस्वभाव:, असन्दिग्धस्वभावत्वात्, यः प्रकाशस्वभावो न भवति नासावसन्दिग्धस्वभावो यथा घटः, न च तथात्मा, न खलु कश्चिदहमस्मि न वेति सन्दिग्धे इति नासिद्धो हेतुः । तथा, आत्मा प्रकाशस्वभावः, बोद्धत्वात्, यः प्रकाशस्वभावो न भवति नासौ
४७- प्रत्यक्ष प्रमाण दो प्रकार का है-मुख्य और सांव्यवहारिक, इसे ध्यान में रखकर मुख्य प्रत्यक्ष का लक्षण कहते हैं
अर्थ- आवरणों का सर्वथा क्षय हो जाने पर चेतन आत्मा का स्वरूप प्रकट हो जाना मुख्य प्रत्यक्ष है ॥ १५ ॥
४८--सूत्र में 'तत्' शब्द का ग्रहण न किया होता तो इससे पहले कहे हुए वैशद्य' का ग्रहण हो जाता । दीर्घकालपर्यन्त बहुमान पूर्वक भली माँति सेवन किये हुए रत्नत्रय के प्रकर्ष के 'अन्त
एकत्व वितर्क-विचारनामक शुक्ल ध्यान के बल से, पूर्ण रूप से ज्ञानावरण आदि घातिक कर्मों का क्षय हो जाने पर, चेतनाप्रकाश-स्वभाव वाले आत्मा का प्रकाश स्वरूप प्रकट हो जाना मुख्य प्रत्यक्ष कहलाता है । जैसे सम्पूर्ण शरीर में मुख प्रधान होता है, उसी प्रकार सर्व ज्ञानों में प्रधान होने से वह मुख्य प्रत्यक्ष कहलाता है । आगम में यह केवलज्ञान के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि यह इन्द्रिय आदि सहायकों के विना ही होता है, विश्व के समस्त पदार्थों को जानता है, और असाधारण है ।
४९ - शंका - आत्मा प्रकाशस्वभाव है, यह कैसे सिद्ध होता है ?
समाधान- आत्मा प्रकाशस्वभाव है, क्योंकि वह असंदिग्ध स्वभाव वाला है, जो प्रकाशस्वभाव नहीं होता वह असंदिग्ध स्वभाव वाला नहीं होता, जैसे घट | आत्मा असंदिग्ध स्वभाव वाला न हो, ऐसा नहीं है, क्योंकि मैं हूँ अथवा नहीं हूँ, ऐसा सन्देह किसी को नहीं होता । औरआत्मा प्रकाशस्वभाव है, क्योंकि वह बोद्धा अर्थात् ज्ञापक है, जो प्रकाशस्वभाव नहीं होता वह