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प्रमाणमीमांसा.
हेतुः । यद्विशदसम्यगर्थनिर्णयात्मकं न भवति न तत् प्रत्यक्षम्, यथा परोक्षमिति व्यतिरेकी । धम्मिणो हेतुत्वेऽनन्वयदोष इति चेत्, न; विशेष धर्मिणि धमिसामान्यस्य हेतुत्वात् । तस्य च विशेषनिष्ठत्वेन विशेषेष्वन्वयसम्भवात् । सपक्षे वृत्तिमन्तरेणापि च विपक्षन्यावृत्तिबलाद्गमकत्वमित्युक्तमेव ॥१३॥
४५-अथ किमिदं वैशा नाम ? । यदि स्वविषयग्रहणम् ; तत् परोक्षेप्यषणम्। अथ स्फुटत्वम् । तदपि स्वसंविदितत्वात् सर्वविज्ञानां सममित्याशङ्क्याह--
प्रमाणान्तरानपेक्षेदन्तया प्रतिभासो वा वैशद्यम् ॥१४॥
४६--प्रस्तुतात् प्रमाणाद् यदन्यत् प्रमाणं शब्दलिंगादिज्ञानं तत् प्रमाणान्तरं तन्निरपेक्षता 'वैशद्यम्' । नहि शाब्दानुमानादिवत् प्रत्यक्षं स्वोत्पत्तौ शब्दलिंगादिज्ञानं प्रमाणान्तरमपेक्षते इत्येकं वैशद्यलक्षणम् । लक्षणान्तरमपि 'इदन्तया प्रतिभासो वा' इति, इदन्तया विशेषनिष्ठतया यः प्रतिभासः सम्यगर्थनिर्णयस्य सोऽपि 'वैशद्यम्' । 'वा' शब्दों लक्षणान्तरत्वसूचनार्थः ॥१४॥ यह हेतु है । जो ज्ञान विशद और सम्यक् अर्थनिर्णय रूप नहीं होता वह प्रत्यक्ष भी नहीं होता, जैसे परोक्ष प्रमाण । यह केवलव्यक्तिरेको हेतु है।
शंका-पक्ष को ही हेतु बनाने से अनन्वय दोष आता है।
समाधान-नहीं ! प्रत्यक्ष विशेष पक्ष है और प्रत्यक्षसामान्य हेतु है। सभी विशेषों में सामान्य की व्याप्ति होती है, अतएव यहाँ अन्वय घटित हो जाता है-अनन्वय दोष नहीं रहता।
यद्यपि यहाँ सपक्षसत्त्व नहीं है, फिर भी हेतु विपक्षव्यावृत्ति के बल से गमक है । यह बात पहले कही जा चुकी है ॥१३ ।
४५-विशदता का स्वरूप क्या है ? यदि अपने स्वरूप को ग्रहण करना विशदता है तो वह परोक्ष प्रमाण में भी होती है, यदि स्फुटता. को विशदता कहा जाय तो वह भी स्वसंवेदी होने से सब प्रमाणों में पाई जाती है। इस आशंका का उत्तर
अर्थ-अन्य प्रमाण की अपेक्षा न होना अथवा 'यह' इस तरह की प्रतीति होना वैशद्य या विशदता है ॥१४॥
४६-यहाँ प्रस्तुत-प्रत्यक्ष-प्रमाण से भिन्न-अनुमान और आगम प्रमाणान्तर कहे गये हैं। उनकी आवश्यकता न होना विशदता है । जैसे शाब्द प्रमाण को अपनी उत्पत्ति में शब्द ज्ञान की और अनुमान प्रमाण को लिंगज्ञान की अपेक्षा रहती है, उस प्रकार प्रत्यक्ष की उत्पत्ति में किसी अन्य प्रमाण की अपेक्षा नहीं रहती। यह विशदता का एक लक्षण है।
विशदता का दूसरा लक्षण है 'यह' इस रूप में प्रतिभास' अर्थात् जिस प्रमाण का प्रतिभास 'यह' इस प्रकार विशेष-निष्ठ हो, वह 'विशद' कहलाता है। सूत्र में प्रयुक्त 'वा' शब्द दूसरे लक्षण का सूचक है ॥१४॥