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प्रमाणमीमांसा
तान्येवेति साङ ख्याः, सहोपमानेन चत्वारीति नैयायिकाः, सहार्थापत्त्या पञ्चेति प्राभाकराः, सहाऽभावेन षडिति भाट्टाः इति न्यूनाधिकप्रमाणवादिनः प्रतिक्षिप्ताः। तत्प्रतिक्षेपश्च वक्ष्यते ॥९॥
३०-तहि प्रमाणद्वैविध्यं किं तथा यथाहुः सौगताः"प्रत्यक्षमनुमानं च" (प्रमाण १. २ मायवि.० १. ३. । ) इति, उतान्यथा ? इत्याह
प्रत्यक्ष परोक्षं च ॥१०॥ ३१-अश्नुते अक्ष्णोति वा व्याप्नोति सकलद्रव्यक्षेत्रकालभावानिति अक्षो जीवः अश्नुते विषयम् इति अक्षम्-इन्द्रियं च । प्रतिः प्रतिगतार्थः, अक्षं प्रतिगतं तदाश्रितम्, अक्षाणि चेन्द्रियाणि तानि प्रतिगतमिन्द्रियाण्याश्रित्योज्जिहीते यत् ज्ञानं तत् प्रत्यक्षं वक्ष्यमाणलक्षणम् । अक्षेभ्यः परतो वर्तत इति परेणेन्द्रियादिना चोक्ष्यत इति परोक्षं वक्ष्यमाणलक्षणमेव । चकारः स्वविषये द्वयोस्तुल्यबलत्वख्यापनार्थः। तेन यदाहुः"सकलप्रमाणज्येष्ठं प्रत्यक्षम्” इति तदपास्तम् । प्रत्यक्षपूर्वकत्वादितरप्रमाणानां तस्य ज्येष्ठतेति चेत्न; प्रत्यक्षस्थापि प्रमाणान्तरपूर्वकत्वोपलब्धेः, लिङ्गात् आप्तोपदेशाद्वा वह्नयादिकमवगम्य प्रवृत्तस्य तद्विषयप्रत्यक्षोत्पत्तेः ॥१०॥ तथा उतने ही मानने वाले सांख्यों का, उपमानसहित चार प्रमाण मानने वाले नैयायिकों का, अर्थापत्तिसहित पाँच प्रमाण मानने वाले प्राभाकरों का और अभाव के साथ छह प्रमाण मानने वाले भाट्टों का-इस प्रकार न्यून या अधिक प्रमाण मानने वालों के मत का निषेध किया गया है। इनका खण्डन आगे करेंगे ॥९॥
३०-तो क्या प्रमाण के दो भेद वही प्रत्यक्ष और अनुमान हैं, जैसा कि बौद्ध कहते हैं ? अथवा और कोई अन्य हैं ? इस प्रश्न का उत्तर
अर्थ--प्रत्यक्ष और परोक्ष-यह दो प्रकार के प्रमाण हैं ॥१०॥
'अश्नुते' या 'अक्ष्णोति इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो सकल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों को व्याप्त करता है, वह 'अक्ष' अर्थात् जीव कहलाता है । जो अपने विषय को व्याप्त करता है, उसे भी अक्ष कहते हैं । यहाँ 'अक्ष' का अर्थ इन्द्रिय है। जो ज्ञान ‘अक्ष पर आश्रित हो अर्थात् इन्द्रियों के निमित्त से उत्पन्न होता हो वह 'प्रत्यक्ष' कहलाता है। उसका लक्षण आगे कहा जाएगा। जो ज्ञान इन्द्रियों से पर हो वह या जो पर--इन्द्रियों से उत्पन्न होता हो, वह परोक्ष कहलाता है । उसका भी स्वरूप आगे कहा जाएगा।
सूत्र में 'च' जो अव्यय है, वह इस तथ्य को सूचित करता है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तुल्य बल वाले हैं। इससे 'प्रत्यक्ष सकल प्रमाणों में ज्येष्ठ है' इस मत का निराकरण हो जाता है । अन्य प्रमाण प्रत्यक्षपूर्वक होते हैं, अतएव प्रत्यक्ष सब प्रमाणों में ज्येष्ठ है, ऐसा मानना ठीक नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष भी अन्य प्रमाणपूर्वक देखा जाता है। लिंग या आप्तोपदेश से अर्थात् पहले अनमान या आगम से अग्नि आदि को जान कर प्रवृत्ति करने वाले को भी अग्नि का प्रत्यक्ष होता है ।।१०।।