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________________ प्रमाणमीमांसा सत्यमेतत्, स्वसाध्यं प्रसाध्य नृत्यतोऽपि दोषाभावाल्लोकवत्, अन्यथा ताम्बूलभक्षणभ्रूक्षेप-खाकृत-हस्तास्फालनादिभ्योऽपि सत्यसाधनवादिनोऽपि निग्रहः स्यात् । अथ स्वपक्षमप्रसाधयतोऽस्य ततो निग्रहः, नन्वत्रापि कि प्रतिवादिना स्वपक्षे साधिते वादिनो वचनाधिक्योपालम्भो निग्रहो लक्ष्येत, असाधिते वा? । प्रथमपक्षे स्वपक्षसिद्ध्यवास्य निग्रहाद्वचनाधिक्योद्भावनमनर्थकम,तस्मिन् सत्यपि पक्षसिद्धिमन्तरेण जयायोगात् । द्वितीयपक्षे तु युगपद्वादिप्रतिवादिनोः पराजयप्रसङ्गो जयप्रसङ्गो वा स्यात्, स्वपक्षसिद्धरभावाविशेषात् । १०८-ननु न स्वपक्षसिद्ध्यसिद्धिनिबन्धनौ जयपराजयौ,तयोर्ज्ञानाज्ञाननिबन्धनत्वात् । साधनवादिना हि साधुसाधनं ज्ञात्वा वक्तव्यम्, दूषणवादिना च दूषणम् । तत्र साधर्म्यवचनाद्वैधर्म्यवचनाद्वाऽर्थस्य प्रतिपत्तौ तदुभयवचने वादिनः प्रतिवादिना सभायामसाधनाङ्गवचनस्योद्भावनात् साधुसाधनाज्ञानसिद्धः पराजयः । प्रतिवादिनस्तु तदूषणज्ञाननिर्णयाज्जयः स्यात् इत्यप्यविचारितरमणीयम्, यतः स प्रतिवादी सत्साधनवादिनः साधनाभासवादिनो वा वचनाधिक्यदोषमुद्भावयेत् ? । तत्राद्यपक्षे को सिद्ध कर लेने के पश्चात् कोई नाचने लगे तो भी कोई बुराई नहीं । लोक में ऐसा देखा जाता है । साध्य की सिद्धि हो जाने पर भी यदि वचनाधिक्यमात्र से निग्रह माना जाय तो ताम्बूलभक्षण, भ्रूक्षेप, वाट्कृत और हस्तास्फालन आदि से भी निग्रह मान लेना चाहिए । य यह माना जाय कि अपने पक्ष को सिद्ध न करने वाले को ही वचनाधिक्य निग्रहस्थान होता है तो यहाँ भी यह प्रष्टव्य है कि-प्रतिवादी द्वारा अपने पक्ष की सिद्धि कर लेने पर वादी का बचनाधिक्य से निग्रह होता है अथवा प्रतिवादी के पक्ष की सिद्धि न होने पर भी वादी निगृहीत हो जाता है ? प्रथम पक्ष स्वीकार किया जाए तो प्रतिवादी के पक्ष की सिद्धि हो जाने से ही बादी निगृहीत हो जाएगा, फिर वचनाधिक्य का उभावन करना पर्थ है । क्यों कि वचनाधिक्य का उदमावन करने पर भी प्रतिवादी जब तक अपने पक्ष को सिद्ध न कर ले तब तक वह विजयी महीं हो सकता। यदि दूसरा पक्ष स्वीकार किया जाय तो एक साथ ही वादी और प्रतिवादी के पराजय या विजय का प्रसंग होगा, क्योंकि दोनों में से किसी के भी पक्ष की सिद्धि नहीं हुई है। १०८-शंका-जय और पराजय का कारण स्वपक्ष की सिद्धि होना या न होना नहीं है। जय और पराजय का कारण तो ज्ञान और अज्ञान हैं । साधनवादो को समीचीन साधन जान कर प्रयोग में लाना चाहिए और दूषणवादी को सच्चा दूषण जान कर प्रयोग करना चाहिए । साधर्म्यप्रयोग या वैधर्म्यप्रयोग से अर्थ की प्रतिपत्ति हो चुकने पर दूसरे का प्रयोग करने के कारण प्रतिवादी ने चतुरंगसभा में वादी को असाधनांगवचन दोष का उदभावन किया। इससे बादी के समीचीन साधनसंबंधी अज्ञान की सिद्धि हुई. अतएव उसका पराजय हो गया और प्रतिवादी के दूषणज्ञान का निश्चय हो जाने से उसकी विजय हुई। समाधान-यह कथन अविपारितरमणीय है। प्रतिवादी समीचीन साधन का प्रयोग करने वाले वादी को वचनाधिक्य दोष का उद्भावन करता है अथवा असमीचीन साधन का प्रयोग करने वाले को ? यदि समीचीन
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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