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________________ प्रमाणमीमांसा १४० ततश्च मृदन्तरितमूलकीलोदकादिवदावरणोपलब्धिकृतमेव शब्दस्य प्रागुच्चारणादग्रहणमिति प्रयत्नाकार्यत्वाभावान्नित्यः शब्द इति २१ । साध्यधर्मनित्यानित्यत्वविकल्पेन शब्दनित्यत्वापादनं नित्यसमा जातिः । यथा अनित्यः शब्द इति प्रतिज्ञाते जातिवादी विकल्पयति-येयमनित्यता शब्दस्योच्यते सा किमनित्या नित्या वेति ? | यद्यनित्या; तदियमवश्यमपायिनीत्यनित्यताया अपायान्नित्यः शब्दः । अथानित्यता नित्यैव; तथापि धर्मस्य नित्यत्वात्तस्य च निराश्रयस्यानुपपत्तेस्तदाश्रयभूतः शब्दोऽपि नित्यो भवेत्, तदनित्यत्वे तद्धर्मनित्यत्वायोगादित्युभयथापि नित्यः शब्द इति २२ । सर्वभावानित्यत्वोपपादनेन प्रत्यवस्थानमनित्यसमा जातिः । यथा घटेन साधर्म्यमनित्येन शब्दस्यास्तीति तस्यानित्यत्वं यदि प्रतिपाद्यते, तद् घटेन सर्वपदार्थानामस्त्येव किमपि साधम्र्म्ममिति तेषामप्यनित्यत्वं स्यात् । अथ पदार्थान्तराणां तथाभावेऽपि नानित्यत्वम्; तर्हि शब्दस्यापि तन्मा भूदिति । अनित्यत्वमात्रापादनपूर्वक विशेषोद्भावनाच्चाविशेषसमातो भिन्नयं जातिः २३ । प्रयत्नकार्यनानात्वोपन्यासेन प्रत्यवस्थानं कार्यसमा जातिः । यथा अनित्यः शब्दः प्रयत्नानन्तरीयकएव मिट्टी में दबे हुए मूल या कोल के समान उच्चारण से पहले शब्द की अनुपलब्धि आवरणोपलब्धिकृतं ही है । इस प्रकार शब्द प्रयत्न का कार्य न होने से नित्य है । (२२) नित्यसमा - साध्यधर्म में नित्यता और अनित्यता का विकल्प करके शब्द की नित्यता का आपादन करना नित्यसमा जाति है । यथा- 'शब्द अनित्य है' इस प्रकार प्रतिज्ञा का प्रयोग करने पर जातिवादी विकल्प करता है-आप शब्द की जो अनित्यता कहते हो सो वह अनि अनित्य है या नित्य ? यदि अनित्य है तो अवश्य ही नष्ट होने वाली है और अनित्यता जब नाशशील है तो शब्द नित्य होगा। अगर शब्द की अनित्यता नित्य है तो धर्म नित्य होने से धर्मो भी नित्य होना चाहिए क्योंकि धर्मो के विना निराधार धर्म रह नहीं सकता । यदि शब्द अनित्य होता तो उसका धर्म (अनित्यत्व) नित्य नहीं हो सकता था । इस प्रकार दोनों तरह से शब्द की नित्यता ही सिद्ध होती है । (२३) अनित्यसमा - सर्व भावों को अनित्यता का आपादन करके हेतु का निरास करना अनित्यसमा जाति है । यथा-यदि अनित्य घट के साथ समानता होने के कारण शब्द को अनित्य कहते हो तो किसी न किसी अंश में सभी पदार्थ घट के समान हैं१, अतः सभी पदार्थ अनित्य हो जाने चाहिए । यदि अनित्य घट के साथ समानता होने पर भी अन्य पदार्थ ( आत्मा आकाश आदि) अनित्य नहीं हैं तो शब्द भी अनित्य नहीं होना चाहिए । पूर्वोक्त ( १८वीं) अविशेषसमा जाति में सब पदार्थों में सामान्यतया विशेषता का अभाव प्रतिपादन किया गया है । यहाँ सब पदार्थों में अनित्यता की समानता का प्रतिपादन किया गया है । (२४) कार्यसमा - प्रयत्न के कार्यों का नानापन कह कर हेतु का निरास करना कार्यसमा जाति है । यथा शब्द अनित्य है, क्योंकि प्रयत्नजन्य है, इस प्रकार वादी के कहने पर जातिवादी १- सत्त्व आदि सामान्य धर्मों की समानता तो है ही ।
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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