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प्रमाणमीमांसा
१३९ • जातिः'। यथा यदि शब्दघटयोरेको धर्मः कृतकत्वमिष्यते तहि समानधर्मयोगात्तयोरविशेषे तद्वदेव सर्वपदार्थानामविशेषः प्रसज्यत इति १८ । उपपत्त्या प्रत्यवस्थानमुपपत्तिसमा जातिः । यथा यदि कृतकत्वोपपत्त्या शब्दस्यानित्यत्वम्,निरवयवत्वोपपस्या नित्यत्वमपि कस्मान्न भवति ? । पक्षद्वयोपपत्त्याऽनध्यवसायपर्यवसानत्वं विवक्षितमित्युद्भावनप्रकारभेद एवायम् १९ । उपलब्ध्या प्रत्यवस्थानमुपलब्धिसमा जातिः । यथा अनित्यः शब्दः प्रयत्नानन्तरीयकत्वादिति प्रयुक्ते प्रत्यवतिष्ठते-न खलु प्रयत्मानन्तरीयकत्वमनित्यत्वे साधनम् ; साधनं हि तदुच्यते येन विना न साध्यमुपलभ्यते उपलभ्यते च प्रयत्नानन्तरीयकत्वेन विनाऽपि विद्युदादावनित्यत्वम् । शब्देऽपि क्वचिद्वायुवेगभज्यमानवनस्पत्यादिजन्य तथैवेति २० । अनुपलब्ध्या प्रत्यवस्थानमनुपलब्धि. समा जातिः । यथा तत्रैव प्रयत्नानन्तरीयकत्वहेतावुपन्यस्ते सत्याह जातिवादी-न प्रयत्नकार्यः शब्दः प्रागुच्चारणादस्त्येसावावरणयोगात्तु नोपलभ्यते । आवरणानुपलम्भेऽप्यनुपलम्भान्नास्त्येव शब्द इति चेत् न, आवरणानुपलम्भेऽप्यनुपलम्भसद्भावात् । आवरणानुपलब्धेश्चानुपलम्भादभावः । तदभावे चावरणोपलब्धर्भावो भवति । घट का एक ही धर्म कृतकत्व मानते हो तो समान धर्म होने से दोनों में कोई विशेषता नहीं होनी और जैसे इन दोनों में कोई विशेषता नहीं है वैसे सभी पदार्थों में विशेषता का अभाव हो जायगा। , १९-उपपत्तिसमा- उपपत्ति के द्वारा निराकरण करना उपपत्तिसमा जाति है । यथायदि कृतकत्व की उपपत्ति से शब्द अनित्य है तो निरवयवत्व की उपपत्ति से नित्य क्यों नहीं है! यहाँ नित्यता और अनित्यता दोनों पक्षों की उपपत्ति होने से अनध्यवसाय (अनिश्चय) में पर्यव. सान होना विवक्षित है । इस प्रकार उद्भावना के प्रकार में ही भेद समझना चाहिए।
२०-उपलब्धिसमा-उपलब्धि के द्वारा निराकरण करना जैसे-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह प्रयत्नजन्य है, ऐसा वादी के कहने पर जातिवादी कहता है-प्रयत्नजन्यता अनित्यत्व सिद्ध करने में साधन नहीं है । साधन वही कहलाता है जिसके बिना साध्य की उपलब्धि न हो सके मगर विद्युत् आदि में अनित्यता तो प्रयत्नजन्यता के बिना भी उपलब्ध होती है। इसी प्रकार वायु के वेग से टूटने वाली वनस्पति आदि से उत्पन्न शब्द में भी वह प्रयत्नजन्यता के बिना ही पाई जाती है ।
२१-अनुपलब्धिसमा-अनुपलब्धि बताकर निरास करना अनुपलब्धिसमा जाति है । जैसे -पूर्ववत् प्रयत्नजन्यत्व हेतु का प्रयोग करने पर जातिवादी कहता है-शब्द प्रयत्न का कार्य नहीं है, वह तो उच्चारण करने से पहले भी विद्यमान रहता है, मगर आवरण के कारण उसकी उपलब्धि नहीं होती। कदाचित् कहा जाय कि आवरण की उपलब्धि न होने पर भी शब्द का अनुपलंभ होता है, इस कारण शब्द (उच्चारण से पहले) नहीं होता, सो ठीक नहीं, क्योंकि, आवरण का उपलंम न होने पर भी शब्द का अनुपलंभ हो सकता है । आवरण को अनुपलब्धि का अनुपलंभ होने से अभाव होता है । उसके अभाव में आवरण की उपलब्धि होती है। अत