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________________ प्रमाणमीमांसा धर्म कश्चित् साध्यमिण्यापादयनुत्कर्षसमां जाति प्रयुक्त-यदि घटवत् कृतकत्वादनित्यः शब्दो घटवदेव मूर्तोऽपि भवतु । न चेन्मूर्तो घटवदनित्योऽपि मा भूदिति शब्दे धर्मान्तरोत्कर्षमापादयति ३। अपकर्षस्तु घटः कृतकः सन्नश्रावणो दृष्ट एवं शब्दोप्यस्तु । नो चेद् घटवदनित्योऽपि माभूदिति शब्दे श्रावणत्वधर्ममपकर्षतीति ४ । वावाभ्यां प्रत्यवस्थानं वावर्ण्यसमे जाती । ख्यापनीयो वर्ण्यस्तद्विपरीतोऽवर्यः। तावेतौ वर्ष्यावौँ साध्यदृष्टान्तधर्मो विपर्यस्यन् वावर्ण्यसमे जाती प्रयुङ्क्ते-यथाविधः शब्दधर्मः कृतकत्वादिर्न तादृग्घटधर्मो यादृग्घटधर्मो न ताहक शब्दधर्म इति ५-६ । धर्मान्तरविकल्पेन प्रत्यवस्थान विकल्पसमा जातिः । यथा कृतकं किञ्चिन्मृदु दृष्टं राङ्कवशय्यादि,किञ्चित्कठिनं कुठारादि,एवं कृतकं किञ्चिदनित्यं भविष्यति घटादि किञ्चिन्नित्यं शब्दादीति ७ । साध्यसाम्यापादनेन प्रत्यवस्थानं सध्यसमा जातिः । यथा-यदि यथा घटस्तथा शब्दः, प्राप्तं तहि यथा शब्दस्तथा घट इति । शब्दश्च साध्य इति घटोऽपि साध्यो भवतु । ततश्च न साध्यः साध्यस्य दृष्टान्तः स्यात् । न चेदेवं तथापि वैलक्षण्यात्सुतरामदृष्टान्त इति ८ । प्राप्त्यप्राप्तिविकल्पाभ्यां वाला उत्कर्षसमाजाति का प्रयोग करता है । यथा-यदि घट के समान कृतक होने से शब्द अनित्य है तो घट के समान मूर्त भी होना चाहिए। ऐसा कह कर शब्द में एक दूसरे धर्म (मूतत्व) को अधिकता का आपादन करता है। (४)अपकर्षसमा-अपकर्ष अर्थात् न्यूनता दिखाकर निरास करना । जैसे-घट कृतक होता हुआ अश्रावण है तो इसी प्रकार शब्द भी अश्रावण होना चाहिए । यदि घट के समान अश्रावण नहीं है तो घट के समान अनित्य भी नहीं होना चाहिए। ऐसा कह कर शब्द के श्रावणत्व धर्म का अपकर्ष करता है। - (५-६) वर्ण्यसमा-अवर्ण्यसमा-वर्ण्य और अवर्ण्य के द्वारा निरास करना वर्ण्यसमा और अवर्ण्यसमा जातियां हैं। सिद्ध करने योग्य साध्यधर्म वर्ण्य कहलाता है और दृष्टान्त का धर्म अवर्ण्य कहलाता है । इस साध्य और दृष्टान्त के धर्मों को उलटपलट करने वाला वर्ण्यसमा और अवर्ण्यसमा जाति का प्रयोग करता है । यथा-जिस प्रकार का कृतकत्व शब्द का धर्म है, उस प्रकार का घट का धर्म नहीं है और जैसा घट का धर्म है वैसा शब्द का धर्म नहीं है। (७) विकल्पसमा-धर्मान्तर का विकल्प करके निरास करना विकल्पसमा जाति है । यथा-कृतक पदार्थ कोई-कोई मृदु देखा जाता है, जैसे-रांकव (मृगचर्म की) शय्या और कोईकोई कठिन होता है जैसे-कुठार आदि । इसी प्रकार कोई कृतक पदार्थ अनित्य भी होंगे । जैसेघट आदि और कोई नित्य होंगे, जैसे शब्द आदि । (८) साध्यसमा-साध्य के साथ समानता दिखलाकर निरास करना साध्यसमा जाति है। यथा-यदि जैसा घट है वैसा ही शब्द है तो इसका अर्थ यह हुआ कि जैसा शब्द है वैसा ही घट है। इस प्रकार जब दोनों सरीखे हैं तब शब्द साध्य है तो घट भी साध्य होना चाहिए और जब दोनों ही साध्य हैं तो एक साध्य दूसरे साध्य का दृष्टान्त किस प्रकार हो सकता है ? यदि दोनों में समानता नहीं है तो दोनों एक दूसरे से विलक्षण होंगे और ऐसी स्थिति में घट दृष्टान्त नहीं हो सकता!
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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