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________________ ११६ प्रमाणमीमांसा अवधाने हि सत्यतोऽर्थ निश्चयः, तस्माच्चावधानमिति । न च पर्षत्प्रतिवादिनौ प्रमाणीकृतवादिनौ यदेतद्वचनसम्बन्धाय प्रयतिष्यते । तथासति न हेत्वाद्यपेक्षेयाताम् तदवचनादेव तदर्थनिश्चयात् । अनित्यः शब्द इति त्वपेक्षिते उक्ते कुत इत्याशङ्कायां कृतकत्वस्य तथैवोपपत्तेः कृतकत्वस्यान्यथानुपपत्तेर्वेत्युपतिष्ठते, तदिदं विषयोपदर्शना. र्थत्वं प्रतिज्ञाया इति ॥७॥ १७-ननु यत् कृतकं तदनित्यं यथा घटः, कृतकश्च शब्द इत्युक्ते गम्यत एतद् अनित्यः शब्द इति तस्य सामर्थ्यलब्धत्वात,तथापि तद्वचने पुनरुक्तत्वप्रसङ्गात्, "अर्थादापन्नस्य स्वशब्देन पुनर्वचनं पुनरुक्तम्"[न्यायसू ५. २. १५]। आह च डिण्डिकरागं परित्यज्याक्षिणी निमील्य चिन्तय तावत् किमियता प्रतीतिः स्यान्नवेति, भावे किं प्रपञ्चमालया( हेतु परि० १) इत्याहगम्यमानत्वेऽपि साध्यधर्माधरसन्देहापनोदाय धर्मिणि पक्षधर्मोपसंहारवत् तदुपपत्तिः ॥८॥ १८-साध्यमेव धर्मस्तस्याधारस्तस्य सन्देहस्तदपनोदाय-यः कृतकः सोऽनित्य अवधान होने पर वचन से अर्थ का निश्चय हो और अर्थनिश्चय से अवधान हो। शंका--वादी को प्रमाणित करने वाले पर्षन और प्रतिवादी वादो के वचन का संबन्ध जोडने के लिए प्रयत्न करेंगे, समाधान-ऐसा होने पर पर्षत और प्रतिवादी हैतु आदि को अपेक्षा नहीं करेंगे बल्कि उनके वचन से ही अर्थ का निश्चय कर लेंगे । शब्द अनित्य है ऐता कहने पर ,वह कैसे' ऐसी आशंका उपस्थित होने पर कृतकत्व तभी संभव हो सकता है अथवा कृतकत्व अन्यथा हो नहीं सकता ऐसा समाधान किया जाता है इस प्रकार विषय दिखलाने के लिये प्रतिज्ञा का प्रयोग आवश्यक है। १७-शंका--जो कृतक होता है वह अनित्य होता है, जैसे घट, शब्द भी कृतक है ऐसा कहने, पर सामर्थ्य से ही (अर्थात् पक्ष का प्रयोग किये बिना ही) :शब्द अनित्य' है ऐसा ज्ञान हो जाता है, फिर भी 'शब्द अनित्य है एसा पक्षप्रयोग करने से पुनरुक्ति दोष होता है । जो विषय अर्थ के सामर्थ्य से ही विदित हो जाय उसे शब्द द्वारा पुनः कहना पुनरुक्ति है। कहा भी है-डिडिकराग (लाल रंग के मषिक के समान आँखों को लालिमा) को त्याग कर अर्थात् शान्त होकर या नेत्रोंको निर्मल करके विचार करो कि अपने (पूर्वोक्त) कथन से शब्द अनित्य है, ऐसी प्रती. ति हो जाती है या नहीं? अगर हो जाती है तो फिर विस्तार करने से क्या लाभ है ? बौद्ध को इस शंका का समाधान करने के लिए कहते हैं सूत्रार्थ-साध्य धर्म के आचारसंबंधी सन्देह का निवारण करने के लिए गम्यमान भी धर्मीपक्ष का उच्चारण करना योग्य है, जैसे उपनय का उच्चारण किया जाता है ॥८॥ १८-'जो कृतक होता है वह अनित्य होता है। इस प्रकार कहने पर भी धर्मो (पक्ष) के
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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