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११.
प्रमाणमीमांसा
७६-तद्विभागमाह
स साधर्म्यवैधाभ्यां देधा ॥२१॥ ७७-स दृष्टान्तः 'साधर्म्यण' अन्वयेन 'वैधhण' च व्यतिरेकेण भवतीति द्विप्र. कारः॥२२॥
७८-साधर्म्यदृष्टान्तं विभजते__साधनधर्मप्रयुक्तसाध्यधर्मयोगी साधयदृष्टान्तः ॥२२॥
७९-साधनधर्मेण प्रयुक्तो न तु काकतालीयो यः साध्यधर्मस्तद्वान् 'साधर्म्य'दृष्टान्तः' यथा कृतकत्वेनानित्ये शब्दे साध्ये घटादिः ॥२२॥ ८०-वैधर्म्यदृष्टान्तं व्याचष्टेसाध्यधर्मनिवृत्तिप्रयुक्तसाधनधर्मनिवृत्तियोगी
वैधर्म्यदृष्टान्तः ॥२३॥ ८१-साध्यधर्मनिवृत्त्या प्रयुक्ता न यथाकथञ्चित् या साधनधर्मनिवृत्तिः तद्वान् 'वैधHदृष्टान्तः । यथा कृतकत्वेनानित्ये शब्दे साध्ये आकाशादिरिति ॥२३॥
इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायाः प्रमाणमीमांसायास्तवृत्तश्च
प्रथमस्याध्यायस्य द्वितीयमाहिह्नकम् ७६-दृष्टान्त के भेद-सूत्रार्थ-साधर्म्य और वैधर्म्य के रूप में दृष्टान्त दो प्रकार का है ॥२१॥ ७७-साधर्म्य अर्थात् अन्वय दृष्टान्त और वैधर्म्य अर्थात् व्यतिरेकद्दष्टान्त ॥२१॥
७८-साधर्म्यदृष्टान्त के भेद-सूत्रार्थ-साधनधर्म की बदौलत जो साध्यधर्म वाला हो अर्थात् जहां साधन होने से साध्य पाया जाय वह साधर्म्य दृष्टान्त कहलाता है।
७९-'साधनधर्म की बदौलत' यह शब्द विशेष रूप से ध्यान में रखने योग्य हैं। इसका ताप्पर्य यह है कि कहीं काकतालीय न्याय से साध्यधर्म पाया जाय तो वह साधर्म्यदृष्टान्त नहीं कहा जाएगा, वरन् साधन के होने से जहाँ साध्य हो वही साधर्म्यदृष्टान्त कहलाएगा । जैसेशब्द अनित्य है। क्योंकि वह कृतक है जैसे घट आदि ।' (यहाँ घट आदि साधर्म्यदृष्टान्त हैं सो इसी कारण कि कृतक होने से उनमें अनित्यता है)॥२२॥ .८०-वधर्म्यदृष्टान्त की व्याख्या-सूत्रार्थ-साध्यधर्म के अभाव के कारण जहाँ साधनधर्म का अभाव हो वह वैधHदृष्टान्त कहलाता है ॥२३॥ .... ८१-यहाँ भी पूर्ववत् ही समझना चाहिए,किन्तु विशेष यह है कि जहाँ साध्य के अभाव के कारण साधन का अभाव हो वह वैधर्म्य दृष्टान्त कहलाता है। जैसे शब्द अनित्य है क्योंकि कृतक है। जो अनित्य नहीं होता वह कृतक भी नहीं होता, जैसे आकाश (यहाँ आकाश में अनित्यता के अभाव के कारण कृतकता का भी अभाव है अतएव आकाश वैधर्म्य दृष्टान्त है)॥२३॥ इस प्रकार आचार्य श्री हेमचंद्रद्वारा विरचित प्रमाणमीमांसा और उसको वृत्तिके
प्रथम अध्याय का द्वितीय आह्निक पूर्ण हवा ।