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प्रमाणमीमांसा
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बाधा यथा शुचि नरशिरःकपालमिति । लोके हि नरशिर:कपालादीनामशुचित्वं सुप्रसिद्धम् । स्ववचनबाधा यथा माता मे वन्ध्येति । प्रतीतिबाधा यथा अचन्द्रः शशीति अत्र शशिनश्चन्द्रशब्दवाच्यत्वं प्रतीतिसिद्धमिति प्रतीतिबाधा ॥१४॥
५९-अत्र साध्यं मः, धर्मर्मिसमुदायो वेति संशयव्यवच्छेदायाह
साध्यं साध्यधर्मविशिष्टो धर्मी, कचित्तु धर्मः ॥१५॥ ६०-साध्यम्' साध्यशब्दवाच्यं पक्षशब्दाभिधेयमित्यर्थः । किमित्याह 'साध्यधर्मेण अनित्यत्वादिना विशिष्टो धर्मी' शब्दादिः । एतत् प्रयोगकालापेक्षं साध्यशब्दवाच्यत्वम् । 'क्वचित्तु' व्याप्तिग्रहणकाले धर्मः' साध्यशब्देनोच्यते,अन्यथा व्याप्ते. रघटनात् । नहि धमदर्शनात् सर्वत्र पर्वतोऽग्निमानिति व्याप्तिः शक्या कर्तुं प्रमाणवि रोधादिति ॥१५॥ ६१-मिस्वरूपनिरूपणायाह
धर्मी प्रमाणसिद्धः ॥१६॥ ६१-'प्रमाणः प्रत्यक्षादिभिः प्रसिद्धो धर्मी' भवति यथाग्निमानयं देश इति । सिर की खोपडी पवित्र है ।' लोक में नरमुण्ड को अपवित्रता सुप्रसिद्ध है, अतएव यह साध्य लोकबाधित है। स्ववचनबाधा, यथा-'मेरी माता वन्ध्या है' यहाँ 'मेरी माता' यह कथन ही 'वन्ध्या' साध्य में बाधक है । प्रतोतिबाधा, यथा-'चन्द्रमा शशी नहीं है' अर्थात् शशी शब्द का वाच्य नहीं है । चन्द्रमा का शशी शब्द द्वारा वाच्य होना प्रसिद्ध है, अतएव इस 'शशी नहीं है' साध्य में प्रतीति से बाधा है ॥१४॥
५९-धर्म (अग्निमत्त्व ) साध्य होता है अथवा धर्म और धर्मों का समुदाय (अग्निमत्त्व धर्म से युक्त पर्वत) साध्य होता है ? इस संशय को दूर करने के लिए कहते हैं। सूत्रार्थ-साध्य धर्म से युक्त धर्मी साध्य होता है; किन्तु कहीं धर्म भी साध्य होता है ॥१५॥
६०-साध्य या 'पक्ष. शब्द का वाच्य क्या है? इसका उत्तर यह है कि अनित्यत्व आदि धर्म से विशिष्ट 'शब्द, आदि धर्मो साध्य या पक्ष कहलाते हैं, अर्थात् 'शब्द अनित्य है' यहाँ अनित्यता धर्म वाला शब्द पक्ष या साध्य है, किन्तु यह विधान अनुमान करते समय के लिए है-जब अनुमान प्रयोग किया जाता है तभी धर्मों साध्य होता है. कहीं पर अर्थात् व्याप्ति को ग्रहण करते समय तो नियम से धर्म ही साध्य होता है उस समय धर्म को ही साध्य न बना कर यदि धर्मों को साध्य बना लिया जाय तो व्याप्ति नहीं बन सकती । जहाँ धूमवत्त्व है वहाँ अग्निमत्त्व है, ऐसी व्याप्ति बनती है, मगर जहाँ धूम होता है वहाँ पर्वत में अग्नि होती है ऐसी व्याप्ति नहीं बनाई जा सकती, ऐसी व्याप्ति प्रमाण से बाधित है ॥१५॥
६१-धर्मो का स्वरूप-सूत्रार्थ-धर्मो प्रमाण से सिद्ध होता है ॥१६॥ . ६२-धर्मी प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध होता है । जैसे यह स्थान अग्निमान् है। यहां धर्मो सिद्ध है।