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________________ १०२ प्रमाणमीमांसा ४९ननु समानकालकार्यजनकं कारणमनुमास्यते इति चेत्न तहि कार्यमनुमितं स्यात् । कारणानुमाने सामर्थ्यात् कार्यमनुमितमेव, जन्याभावे जनकत्वाभावादिति चेत् हन्तवं कारणं कार्यस्यानुमापकमित्यनिष्टमापद्येत । शकटोदयकृत्तिकोदयादीनां तु यथाऽविनाभावं साध्यसाधनभावः । यदाह "एकार्थसमवायस्तु यथा येषां तथैव ते । गमका गमकस्तन्न शकटः कृत्तिकोदितेः।" एवमन्यष्वपि साधनेषु वाच्यम् । ननु कृतकत्वानित्यत्वयोरेकार्थसमवायः कस्मानेष्यते? ; न, तयोरेकत्वात् । यदाह घन्तापेक्षिणी सत्ता कृतकत्वमनित्यता। एकव हेतुः साध्यं च द्वयं नैकाश्रयं ततः ॥” इति । ५०. स्वभावादीनां चतुर्णा साधनानां विधिसाधनता, निषेधसाधनत्वं तु विरोधिनः। स हि स्वसन्निधानेनेतरस्य प्रतिषेधं साधयति,अन्यथा विरोधासिद्धः । ५१-'च'शब्दो यत एते स्वभावकारणकार्यव्यापका अन्यथानुपपन्नाः स्वसाध्य ४९-शंका-यदि समकालीन कार्यजनक कारण का अनुमान कर लिया जाय तो क्या हानि है ? समाधान-तो यह कार्य का अनुमान नहीं कहलाया। शंका-कारण का अनुमान कर लेने पर सामर्थ्य से कार्य का भी अनुमान हो ही जाएगा' क्योंकि जन्य के अभाव में जनक (कारण) होता ही नहीं है । समाधान-तब तो कारण, कार्य का अनुमापक हो जाएगा। यह आप को इष्ट नहीं है । शकटोदय और कृत्तिकोदय आदि का अविनाभाव के अनुसार साध्यसाधनभाव होता है। कहा भी है- जिन वस्तुओं में जिस प्रकार का एकार्थसमवायसंबंध होता है,वे उसी प्रकार से गमक होती हैं। अतएव शकटोदय कृत्तिकोदय का गमक नहीं होता (किन्तु कृत्तिकोदय ही भाविशकटोदय का गमक होता है।) यही बात अन्य एकार्थसमवायिसाधनों के विषय में समझना चाहिए। शंका-कृतकत्व और अनित्यत्व में एकार्थसमवायसंबंध क्यों स्वीकार नहीं किया जाता ? समाधान-वे दोनों एक ही हैं, अतएव दोनों में एकार्थसमवाय नहीं है कहा भी है _ 'आदि और अन्त की अपेक्षा रखने वाली सत्ता कृतकत्व है और वही अनित्यता है। वही हेतु और वही साध्य है,अतएव वे दोनों एकार्थसमवायि नहीं हैं। ५०--ये स्वभाव आदि चार हेतु विधि के साधक होते हैं, किन्तु विरोधी हैन निषेध का साधक होता है । वह अपनी विद्यमानता में दूसरे का निषेध सिद्ध करता है, अन्यथा विरोध ही सिद्ध नहीं हो सकता। (५१)-सूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द विशेष अर्थ का द्योतक है,वह बतलाता है कि-ये स्वभाव कारण, कार्य और व्यापक एकार्थसमवायो-अन्यथानुपपन्न हो कर अपने साध्य के गमक-ज्ञापक होते
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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