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प्रस्तावना
हेमचन्द्र के उपदेश से कुमारपाल ने अपने जीवन में न केवल परिवर्तन ही किया किन्तु गुजरात को दुर्व्यसनों में से मुक्त करने का योग्य प्रयास भी किया। जिसमें भी विशेषतः उसने जुत्र और मद्य का प्रतिबन्ध करवाया, और निवेश के धनापहरण का कानून भी बन्द किया | हेमचन्द्र के सदुपदेश से यज्ञ-यागादि में पशुहिंसा बन्द हुई और कुमारपाल के सामन्तों के शिलालेखों के अनुसार अमुक अमुक दिन के लिए पशुहिंसा का प्रतिबन्ध भी हुआ था । कुमारपाल ने अनेक जैन-मन्दिर भी बनवाए थे जिनमें से एक 'कुमार-विहार' नामक मन्दिर का वर्णन हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र ने 'कुमार- विहार- शतक' में किया है । 'मोहराजपराजय' नामक समकालीनप्राय नाटक में भी इन घटनाओं का रूपकमय उल्लेख है।
उस समय के अन्य महापुरुषों के साथ हेमचन्द्र के सम्बन्ध तथा वर्तन विषयक थोड़ी सी ज्ञातव्य सामग्री मिलती है। इस बात को पहले कह ही चुके हैं कि उदयन मंत्री के घर में उसके पुत्रों के साथ बचपन में चनदेव रहा था। हेमचन्द्र को साधु बनाने में भी उदयन मंत्री ने अत्यधिक भाग लिया था । उसके बाद उसके पुत्र बाहड़ द्वारा कुमारपाल के साथ गाढ़ परिचय हुआ था इसका भी निर्देश कर चुके है।
'प्रभाव चरित' 'महामति भागवत देवबोध' का उल्लेख हेमचन्द्र का परस्पर विद्या की कद्र करनेवाला मैत्री सम्बन्ध था । afa श्रीपाल से भी हेमचन्द्र का गाह परिचय था ।
करता है। उसके साथ वहनगर की प्रशस्ति के
उस समय हेमचन्द्र की साहित्यिक प्रवृत्ति पूर्ण उत्साह से चल रही थीं । सिद्धहेम शब्दानुशासन के बाद काव्यानुशासन तथा छन्दोनुशासन कुमारपाल के समय में प्रसिद्ध हो गए थे। संस्कृतद्वयाश्रय के अन्तिम सर्ग तथा प्राकृत द्वयाश्रय कुमारपाल चरित भी इसी समय लिखे गए |
अपूर्ण उपलब्ध 'प्रमाणमीमांसा' की रचना अनुशासनों के बाद हुई । सम्भव है, वह हेमचन्द्र के जीवन की अन्तिम कृति हो । योगशास्त्र, त्रिषष्टिशलाका-पुरुष चरित नामक विशाल जैन-पुराण, स्तोत्र आदि की रचना भी कुमारपाल के राजत्वकाल में ही हुई थी । इनके अतिरिक्त पूर्व रचित ग्रन्थों में संशोधन और उन पर स्वोपज्ञ टीकाएँ लिखने की भी प्रवृति चलती थी ।
'प्रभावक चरित' में हेमचन्द्र के 'आस्थान' (विद्यासमा ) का वर्णन है वह उल्लेखनीय है। "हेमचन्द्र का आस्थान जिसमें विद्वान् प्रतिष्ठित हैं, जो मोल्लास का निवास और भारती का पितृ-गृह है, जहाँ महाकवि अभिनव ग्रन्थ निर्माण में आकुल हैं, जहाँ पट्टिका (तरुती) और पट्ट पर लेख लिखे जा रहे हैं, शब्दव्युत्पत्ति के लिए ऊहापोह होते रहने
कुमारपाल को 'माहेश्वरनृपाणी' कहा है और संस्कृत 'वाय' के बीसवें सर्ग में कुमारपाल की शिवभकि का उल्लेख है । देखा काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ० ३३१ और २८७ ।
१ देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ० १८९ तथा पृ० १५५-९६१ ।